बुद्धि-चातुर्य से मिला सम्मान
प्राचीन काल में रुद्र शर्मा नामक एक ब्राह्मण की दो पत्नियां थीं| दुर्भाग्य से बच्चे को जन्म देते समय बड़ी पत्नी की मृत्यु हो गई, किंतु उससे उत्पन्न पुत्र बच गया, जिसका पालन-पोषण रुद्र शर्मा की छोटी पत्नी करने लगी|
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बालक धीरे-धीरे बड़ा होने लगा, किंतु सौतेली मां द्वारा उचित आहार न दिए जाने के कारण वह सूखा और बड़े पेट वाला हो गया| उसकी दशा देख रुद्र शर्मा ने पत्नी से कहा – “तुमने इस मातृविहीन बालक की बड़ी दुर्दशा कर दी है|”
यह सुनकर उसकी पत्नी ने कहा – “मैंने अपनी ओर से तो इसे बड़े स्नेह से पाला है, अब यह ऐसा हो गया तो मैं क्या करूं?”
पत्नी के मोहजाल में फंसे रुद्र शर्मा ने उसकी बातों पर विश्वास कर लिया और समझ लिया कि पुत्र का स्वास्थ्य ही ऐसा होगा| विमाता से उपेक्षित बालक घर पर ही रहता था| सौतेली मां के संरक्षण में उसका बचपन नष्ट हो जाने के कारण लोग उसे ‘बालविनष्टक’ कहने लगे|
कुछ साल बाद सौतेली मां ने भी पुत्र को जन्म दिया, जिसका पालन-पोषण वह बड़े लाड़-प्यार से करती| दूसरी ओर बालविनष्टक को समय पर भोजन न मिलता, जिससे उसके मन में यह बात समा गई कि सौतेली मां उसके साथ दुर्व्यवहार करती है, अत: वह उससे बदला लेने का विचार करने लगा| वह अभी पांच वर्ष का ही था कि एक दिन सायंकाल घर आने पर वह अपने पिता से बोला – “पिताजी! मेरे दो बाप हैं|”
बच्चे की बात सुन रुद्र शर्मा ने पत्नी को चरित्रहीन समझ लिया| उसने पत्नी को घर से तो नहीं निकाला, परंतु उससे बोलना आदि सब कुछ छोड़ दिया|
पति के व्यवहार से पत्नी बड़ी चिंतित हुई| वह समझ गई कि हो-न-हो, बालविनष्टक ने ही पिता के कान भरे हैं, अत: एक दिन उसने बालविनष्टक को गोद में बैठाकर सुंदर भोजन कराकर बड़े प्यार से उससे पूछा – “पुत्र! तुमने अपने पिता को मेरे विरुद्ध क्यों कर दिया है?”
“अभी क्या किया, देखती जाओ!” बालविनष्टक ने कहा|
“बेटे! ऐसा क्यों करते हो?” विमाता ने पूछा|
“तुमने मेरी कौन-सी चिंता की है? तुम अपने पुत्र को तो स्वादिष्ट खाना खिलाती हो और मुझे रूखा-सूखा?”
विमाता ने समझ लिया कि उसे प्रसन्न किए बिना बात न बनेगी, अत: वह बोली – “बेटे! अब मैं ऐसा नहीं करूंगी, बस तुम अपने पिता को मुझ पर प्रसन्न करा दो|”
“तब ठीक है| आज जब पिताजी घर आएं तो तुम्हारी नौकरानी उन्हें दर्पण दिखा दे| इससे आगे का कार्य मेरा रहा|”
उसके बताए अनुसार सायंकाल जब रुद्र शर्मा घर लौटा तो नौकरानी ने उसे दर्पण दिखा दिया| उसी समय बालविनष्टक कह उठा – “पिताजी! यही मेरे दूसरे पिता हैं|”
बच्चे की बातें सुन रुद्र शर्मा को अपनी भूल का अहसास हुआ| वह अपनी पत्नी के साथ पुन: अच्छा व्यवहार करने लगा|
इस प्रकार बालविनष्टक नामक उस बालक ने अपने बुद्धि-चातुर्य से अपने पिता और विमाता की नजरों से अपना स्थान प्राप्त कर लिया|
किसी संत का यह कथन बिल्कुल सही है कि बुद्धि-चातुर्य से बड़ी-से-बड़ी मुसीबत पर भी काबू पाया जा सकता है|