बोला तो मरा!
एक राजा था| उसकी कोई सन्तान नहीं थी| एक बार नगर में एक अच्छे सन्त आये| राजा उनके पास गया और सन्तान के लिये प्रार्थना की| सन्त ने कहा कि राजन! तुम्हारे प्रारब्ध में सन्तान लिखी नहीं है|
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इस विषय में कुछ नही कर सकता| राजा उदास मन से वहाँ से लौट पड़ा| रास्ते में उन्हीं सन्ता का एक शिष्य मिल गया| शिष्य ने पूछ लिया कि महाराज! आप कैसे यहाँ आये?
राजा ने कहा कि मैं सन्तान की कामना से आया था, पर काम हुआ नहीं! शिष्य ने कह दिया कि चिन्ता मत करो, आपकी सन्तान हो जायगी! राजा प्रसन्न होकर महल में लौट आया! इधर गुरु जी को मालूम हुआ तो वे शिष्य पर बड़े नाराज हुए कि राजा के भाग्य में सन्तान का योग नहीं था, तुमने सन्तान होने की बात क्यों कह दी? सिष्य बोला कि क्या करूँ, मुँह से निकल गया! गुरूजी ने कहा कि अपने वचन के कारण अब तुम्हें ही राजा के घर पुत्र बनकर जन्म लेना पड़ेगा|
समय पाकर राजा के घर एक पुत्र का जन्म हुआ| पुत्र सब शुभ लक्षणों से सम्पन्न था, पर उसमें एक ओश था कि वह मुँह से कुछ बोलता नहीं था| राजा ने अच्छे-अच्छे वैद्यो को दिखाया, पर कोई लाभ नहीं हुआ| राजा ने घोषणा कर दी कि जो व्यक्ति राजकुमार से बुलवायेगा, उसको एक लाख रूपये इनाम में दिये जायँगे| अनेक व्यक्ति आये, उन्होंने तरह-तरह के उपाय किये, पर कोई भी राजकुमार से बुलवा नहीं सका|
समय बीतता गया| राजकुमार कुछ बड़ा हो गया| एक दिन राजा के आदमी राजकुमार को वन में घुमाने ले गये| वहाँ एक शिकारी बैठा था और पक्षी को खोज रहा था कि कोई पक्षी दिखायी दे तो उसको मारूँ| इतने में एक पेड़ पर बैठा पक्षी बोल पड़ा| शिकारी की दृष्टि उस पक्षी की तरफ गयी और उसने पक्षी को मार गिराया| यह देखते ही राजकुमार के मुँह से निकल पड़ा-‘बोला तो मर!’ यह बात सुनते ही राजकुमार के साथ आये आदमी बड़े हर्षित हो गये कि आज तो राजकुमार बोल गया! वे राजा के पास गये और उसको समाचार दिया कि आज वन में राजकुमार बोल पड़ा| राजा ने उनसे कहा कि मेरे सामने बुलवाओ, तब मैं मानूँगा| उन आदमियों ने बहुत प्रयत्न किया, पर राजकुमार कुछ बोला नहीं| राजा ने कहा कि तुम झूट बोलते हो, मैं तुम्हे फाँसी दूँगा| राजकुमार फिर बोल उठा-‘बोला तो मरा!’ राजा ने बड़ा आश्चर्य किया| उसने राजकुमार से प्रार्थना की कि साफ-साफ कहो, बात क्या है? अब राजकुमार बोला-‘मैं वही साधु हूँ, जिसने आपको सन्तान होने का आशीर्वाद दिया था| आपके प्रारब्ध में सन्तान नहीं थी, पर मैं बोल गया, इसलिये मेरे को आपके घर जन्म लेना पड़ा! अगर मैं न बोलता तो मेरे को दोबारा जन्म न लेना पड़ता| पक्षी भी बोला तभी शिकारी के द्वारा मारा गया| इन आदमियों ने आपको मेरे बोलने का समाचार दिया तो परिणाम फाँसी लगने लगी| यह सब बोलने का ही परिणाम है| इसलिये मेरे मूंह से निकला-‘बोला तो मरा!’ अब मैं भी जाता हूँ; क्योंकि मैं बोल गया! ऐसा कहकर राजकुमार मर गया|
सन्तों ने ठीक ही कहा है-
जनहरिया संसार में, बहु बोल्यां बहु दुक्ख|
चुप रहिये हरि सुमिरिये, जो जिव चाहे सुक्ख||