बीरबल और तानसेन का विवाद (बादशाह अकबर और बीरबल)
तानसेन और बीरबल में किसी बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया| दोनों ही अपनी-अपनी बात पर अटल थे| हल निकलता न देख दोनों बादशाह की शरण में गए| बादशाह अकबर को अपने दोनों रत्न प्रिय थे| वे किसी को भी नाराज नहीं करना चाहते थे, अत: उन्होंने स्वयं फैसला न देकर किसी और से फैसला कराने की राय दी|
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“हुजूर, जब आपने किसी और से फैसला कराने को कहा है तो यह भी बता दें कि हम किस गणमान्य व्यक्ति से अपना फैसला करवाएं?” बीरबल ने पूछा|
“तुम लोग महाराणा प्रताप से मिलो, मुझे यकीन है कि वे इस मामले में तुम्हारी जरूर मदद करेंगे|” बादशाह अकबर ने जवाब दिया|
अकबर की सलाह पर तानसेन और बीरबल महाराणा प्रताप से मिले और अपना-अपना पक्ष रखा| दोनों की बातें सुनकर महाराणा प्रताप कुछ सोचने लगे, तभी तानसेन ने मधुर रागिनी सुनानी शुरू कर दी| महाराणा मदहोश होने लगे| जब बीरबल ने देखा कि तानसेन अपनी रागिनी से महाराणा को अपने पक्ष में कर रहा है तो उससे रहा न गया, तुरन्त बोला -“महाराणाजी, अब मैं आपको एक सच्ची बात बताने जा रहा हूं; जब हम दोनों आपके पास आ रहे थे तो मैंने पुष्कर जी में जाकर प्रार्थना की थी कि मेरा पक्ष सही होगा तो सौ गाय दान करूंगा; और मियां तानसेन जी ने प्रार्थना कर यह मन्नत मांगी कि यदि वह सही होंगे तो सौ गायों की कुर्बानी देंगे| महाराणा जी अब सौ गायों की जिंदगी आपके हाथ में है|”
बीरबल की यह बात सुनकर महाराणा चौंक गए| भला एक हिंदू शासक होकर वह गोहत्या के बारे में कैसे सोच सकते थे| उन्होंने तुरन्त बीरबल के पक्ष को सही बताया|
जब बादशाह अकबर को यह बात पता चली तो वह बहुत हंसे|