बिना विचारे काम मत करो
एक किसान ने एक नेवला पाल रखा था| नेवला बहुत चतुर और स्वामिभक्त था| एक दिन किसान कहीं गया था| किसान की स्त्री ने अपने छोटे बच्चे को दूध पिलाकर सुला दिया और नेवले को छोड़कर वह घड़ा और रस्सी लेकर कुएँ पर पानी भरने चली गयी|
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किसान की स्त्री के चले जाने पर वहाँ एक काला साँप बिल में से निकल आया| बच्चा पृथ्वी पर कपड़ा बिछाकर सुलाया गया था और साँप बच्चे की ओर ही आ रहा था| नेवले ने यह देखा तो साँप के ऊपर टूट पड़ा| उसने साँप को काटकर टुकड़े-टुकड़े कर डाला और घर के दरवाजे पर किसान की स्त्री का रास्ता देखने गया|
किसान की स्त्री घड़ा भरकर लौटी| उसने घर के बाहर दरवाजे पर नेवले को देखा| नेवले के मुख में रक्त लगा देखकर उसने समझा कि इसने मेरे बच्चे को काटा है| दुःख और क्रोध के मारे भरा घड़ा उसने नेवले पर पटक दिया| बेचारा नेवला कुचलकर मर गया|
वह स्त्री दौड़कर घर में आयी| उसने देखा कि उसका बच्चा सुख से सो रहा है और वहाँ एक कला साँप कटा पड़ा है| स्त्री को अपनी भूल का पता लग गया| वह दौड़कर फिर नेवले के पास आयी और मरे नेवले को उठाकर रोने लगी| लेकिन अब उसके रोने से क्या लाभ? इसलिये कहा-
बिना बिचारे जो करै, सो पीछे पछताय|
काम बिगारे आपनो, जगमें होत हँसाय||