बिना विचारे जो करे…
एक सुरम्य वन में स्थित झील में बहुत से जलचर बड़े ही प्रेमभाव से रहते थे| उन्हीं में एक केकड़ा और सारस भी थे| दोनों में अच्छी मित्रता थी| सारस को कोई दुख था तो बस यह कि एक साँप आकर उसके अंडे खा जाया करता था|
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एक दिन केकड़ा झील के किनारे बैठा था| तभी मुहँ लटकाए सारस भी वही आ पहुँचा| मित्र का उतरा हुआ चेहरा देखकर केकड़े ने पूछा, ‘कहो मित्र! मुहँ क्यों लटका रखा है?’
‘क्या बताऊं मित्र! फिर वही कहानी, साँप फिर मेरे अंडे खा गया|’
‘दिल छोटा मत करो| इस दुष्ट सर्प का अंत करना ही होगा, मेरे पास एक उपाय है|’ केकड़ा सारस के कान में फुसफुसाने लगा| सुनकर सारस की आँखों की चमक छा गई, ‘सुझाव तो अच्छा है, अभी इस उपाय को करता हूँ|’ कहकर सारस झील की ओर चल दिया|
झील के किनारे किसी मछुआरे ने मछलियाँ सुखाने रखी हुई थी| सारस ने एक मछली चोंच में दबाई और उसे नेवले के बिल के पास डाल दिया| इसी प्रकार उसने कुछ और मछलियाँ उठाकर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर डाल दी| सब कुछ केकड़े की योजनानुसार हो रहा था|
आसपास मछलियों की गंध पाकर नेवला अपने बिल से बाहर निकला और मछलियों को खाता हुआ वहाँ आ पहुँचा, जहाँ सारस रहता था| पास ही साँप भी लेटा आराम कर रहा था| दोनों ने एक-दूसरे को क्रोध से देखा और भिड़ गए| कुछ ही देर में नेवले ने साँप को मार डाला| यह देखकर सारस बहुत प्रसन्न हुआ|
लेकिन सारस की यह खुशी अधिक देर तक न टिक सकी| अगले दिन नेवला मछलियों के लोभ में फिर वहाँ आ निकला| लेकिन उसे यह देखकर बहुत निराशा हुई कि आज वहाँ एक भी मछली नही थी| तभी उसकी निगाह पास की झाड़ियों पर पड़ी| उन्हीं झाड़ियों में सारस की पत्नी ने अंडे दिए हुए थे| नेवला झाड़ियों में घुस गया और अंडे खाने लगा| तभी सारस का जोड़ा वहाँ आ गया| उन्होंने जब नेवले को झाड़ियों में बैठे अंडे खाते देखा तो माथा पीट लिया और अपने भाग्य को कोसने लगे|
कथा-सार
सारस ने साँप से अंडे बचाने के लिए चाल चलकर उसे नेवले के हाथों मरवा दिया, लेकिन उसे क्या पता था कि वह एक आफत दूर करने के लिए दूसरी आफत को बुलावा दे रहा है| इसीलिए कहा है- कुछ भी करने से पहले सोच-विचार लेना चाहिए- ‘बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताए|’