बिना दान दिये परलोक में भोजन नहीं मिलता
विदर्भ देश में श्वेत नामक राजा राज्य करते थे| वे सतर्क होकर राज्य का संचालन करते थे| उनके राज्य में प्रजा सुखी थी| कुछ दिनों के बाद राजा के मन में वैराग्य हो आया| तब वे अपने भाई को राज्य सौंपकर वन में तपस्या करने चले गये|
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उन्होंने जिस लगन से राज्य का संचालन किया था, उससे भी अधिक लगन से हजारों वर्ष तक तपस्या की|
उत्तम तपस्या के प्रभाव से उन्हें ब्रह्मलोक की प्राप्ति हुई| वहाँ उन्हें सब तरह की सुख-सुबिधा मिली, किंतु भोजन का कोई प्रबन्ध न था| भूख के मारे उनकी इन्द्रियाँ विकल हो गयीं| उन्होंने ब्रम्हाजी से पूछा कि ‘यह लोक भूख-प्यास से रहित माना जाता हैं; फिर किस कर्म के विपाक से मैं भूख से सतत पीड़ित रह रहा हूँ|’ ब्रम्हाजी ने कहा-‘वत्स! मृत्युलोक में तुमने कुछ दान नहीं किया, किसी को कुछ खिलाया नहीं| वहाँ बिना कुछ दान दिये परलोक में खाने को नहीं मिलता| भोजन से तुमने केवल अपने शरीर को पाला है, इसलिये उसी मुर्दे शरीर को वहाँ जाकर खाना पड़ेगा| इसके अतिरिक्त तुम्हारे भोजन का कोई मार्ग नहीं है| तुम्हारा वह शव अक्षय बना रहेगा| सौ वर्ष बाद महर्षि अगस्त्य तुम्हारा उद्धार करेंगे|’
ठीक सौ वर्ष बाद दैवयोग से महर्षि अगस्त्य सौ योजना वाले उस विशाल वन में जा पहुँचे| वह जंगल बिलकुल सुनसान था| वहाँ न कोई पशु था न पक्षी| उस वन के मध्य में चार कोस लम्बी एक झील थी| अगस्त्य जी को उसमें एक मुर्दा दिख पड़ा| उसे देखकर महर्षि सोचने लगे कि यह किसका शव है? यह कैसे मर गया| इसी बीच आकाश से एक अदभुत विमान उतरा| उस विमान से एक दिव्य पुरुष निकला| वह झील में स्नान कर उस शव का मांस खाने लगा| भरपेट मांस खाकर वह सरोवर में उतरा और उसकी छठा निहारका फिर स्वर्ग की ओर जाने लगा| महर्षि अगस्त्य उससे पूछा-‘देखने में तो तुम देवता मालूम पड़ते हो, किंतु तुम्हारा यह आहार बहुत ही घृणित है|’ तब उस स्वर्गवासी पुरुष ने अपना पूरा वृत्तान्त कह सुनाया और यह भी बताया कि ‘हमारे सौ वर्ष पूरे हो गये हैं| पता नहीं महर्षि अगस्त्य मुझे कब दर्शन देंगे कि हमारा उद्धार होगा?’
अगस्त्य जी ने कहा-‘महाभाग! मैं ही अगस्त्य हूँ, बताओ तुम्हारा क्या उपकार करूँ?’ तब उसने कहा-‘मैं अपने उद्धार के लिये आपको एक अलौकिक आभूषण भेंट करता हूँ| इसे स्वीकार कर मेरा उद्धार करें| निर्लोभ महर्षि ने उसके उद्धार के लिये उस आभूषण को स्वीकार कर लिया| आभूषण के स्वीकार करते ही वह शव अदृश्य हो गया और उस पुरुष को अक्षयलोक की प्राप्ति हुई|’