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भीम-हिडिंबी विवाह

भीम-हिडिंबी विवाह

पांडव जलते हुए लाक्षागृह से बचकर, सुरंग के रास्ते, अधंकार में चलते रहे और गंगा नदी के तट पर जा पहुँचे| वहां विदुर द्वारा भेजा हुआ नाविक उनकी प्रतीक्षा कर रहा था| नदी पार करने के बाद उन सबको दूर तक पैदल चलना पड़ा| कुंती जब थक जातीं तब विशालकाय भीम उन्हें कन्धों पर उठा लेते| भीम इतने शक्तिशाली थे कि कई बार वे चारों भाइयों और कुंती को एक साथ उठा लेते थे|

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सघन वन में पहुचने पर सबको थकावट के कारण नींद सताने लगी| अंधेरी रात में सुरक्षा की दृष्टि से सभी का एक साथ सो जाना उचित नहीं था| अतः भीम ने कहा कि वे जागकर पहरा देंगे| इस घने वन पर हिडिंबी नामक राक्षस आधिपत्य था| हिडिंबी ने कुंती और उसके परिवारजनों के देखा और अपनी बहन हिडिंबी से उन सबको बंदी बना लेने को कहा| हिडिंबी ने जाकर देखा कि सब पांडव गहरी निद्रा में सो रहे  थे, केवल हृष्ट-पुष्ट, शक्तिशाली भीम जाग रहे थे| भीम को देखते ही हिडिंबी उन पर मोहित हो गई| अपनी कुरूपता को छुपाने के लिए हिडिंबी ने जादू से एक सुन्दर युवती का वेष धारण कर लिया| वह भीम के पास गई और अपने भाई के बारे में चेतावनी देते हुए कहा, “मेरा भाई राक्षस है, वह आप लोगों को मार डालेगा| मै आपको सावधान करने आई हूँ| सुनिये, मैं आपको बहुत पसंद करती हूँ, क्या आप मुझसे विवाह करेंगे?”

इस बीच हिडिंबी, अपने बहिन को ढूँढ़ते हुए, वहां आ पहुँचा| माता और भाइयों की रक्षा के लिए भीम को हिडिंबी से युद्ध करना पड़ा| इस मल्ल युद्ध में हिडिंबी मारा गया| कुंती और चारों पांडवों ने जागने पर हिडिंबी को देखा| भीम ने कुंती से आज्ञा लेकर हिडिंबी से विवाह कर लिया| हिडिंबी ने तन-मन से सबकी सेवा की| कुछ समय पश्चात हिडिंबी और भीम का घटोत्कच नामक पुत्र उत्पन्न हुआ|

हिडिंबी ने वन के आखिरी छोर तक पांडवों के साथ यात्रा की| परन्तु जब वे वन की सीमा पर पहुँचे, वह वहीँ रुक गई और कहा, “मै इस वन को नहीं छोड़ सकती, मुझे यहीं रहने की आज्ञा दें|” हिडिंबी और घटोत्कच को वहीँ छोड़कर पांडव आगे बढ़े|