भेड़ की खाल में भेड़िया
एक बार एक भेड़िए को कही से भेड़ की खाल मिल गई तो वह फूला नही समाया| वह सोचने लगा, ‘सूर्यास्त के बाद जब गड़रिया भेड़ों को बाड़े में बंद कर देगा, तब मैं भी भेड़ों के बीच बाड़े में घुस जाऊँगा और रात को मोटी-सी भेड़ उठाकर भाग जाऊँगा| फिर उसे चटकारे लेकर खाऊँगा और इस खाल के कारण वह मुझे पहचान भी नही पाएगा|’
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यह सोचकर वह मैदान में चर रही भेड़ों के समूह में शामिल हो गया|
शाम होने पर गड़रिया भेड़ों को बाड़े में बंद कर अपने घर चला गया| अब भेड़िया रात होने की प्रतीक्षा करने लगा| उसने एक मोटी-तगड़ी भेड़ का चयन भी कर लिया था|
जब रात का अँधेरा छाने लगा तो भेड़ की खाल में छिपा भेड़िया चुपचाप आकर भेड़ों के झुंड में समा गया|
यहाँ तक तो सब ठीक था लेकिन इसके बाद जो हुआ वह भेड़िए का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा|
हुआ यह कि गड़रिए के घर कुछ अतिथि आ गए| उसने नौकर को आदेश दिया कि वह एक मोटी-तगड़ी भेड़ हलाल कर लाए| नौकर बाड़े में गया और भेड़ की खाल में छिपे भेड़िए को ही उठाकर ले गया और उसे हलाल कर डाला, क्योंकि डीलडौल में वही सबसे अलग था|
कथा-सार
परीस्थितियाँ कब कैसा रूप ले ले, कोई नही जानता| इसलिए किसी का अहित कल्पना में भी नही करना चाहिए| भेड़ की खाल ओढ़कर भेड़िया गया तो था भेड़ का शिकार करने, परंतु उसे खुद हलाल होना पड़ा| दुर्भाग्य कब किस रूप में आ जाए कोई नही जानता|