भक्ति और संपत्ति
एक बार काशी के निकट के एक इलाके के नवाब ने गुरु नानक से पूछा, ‘आपके प्रवचन का महत्व ज्यादा है या हमारी दौलत का?‘ नानक ने कहा, ‘इसका जवाब उचित समय पर दूंगा।’ कुछ समय बाद नानक ने नवाब को काशी के अस्सी घाट पर एक सौ स्वर्ण मुद्राएं लेकर आने को कहा। नानक वहां प्रवचन कर रहे थे।
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नवाब ने स्वर्ण मुद्राओं से भरा थाल नानक के पास रख दिया और पीछे बैठ कर प्रवचन सुनने लगा। वहां एक थाल पहले से रखा हुआ था। प्रवचन समाप्त होने के बाद नानक ने थाल से स्वर्ण मुद्राएं मुट्ठी में लेकर कई बार खनखनाया। भीड़ को पता चल गया कि स्वर्ण मुद्राएं नवाब की तरफ से नानक को भेंट की गई हैं।
थोड़ी देर बाद अचानक नानक ने थाल से स्वर्ण मुद्राएं उठा कर गंगा में फेंकना शुरू कर दिया। यह देख कर वहां अफरातफरी मच गई। कई लोग स्वर्ण मुदाएं लेने के लिए गंगा में कूद गए। भगदड़ में कई लोग घायल हो गए। मारपीट की नौबत आ गई। नवाब को समझ में नहीं आया कि आखिर नानक ने यह सब क्यों किया। तभी नानक ने जोर से कहा, ‘भाइयों, असली स्वर्ण मुद्राएं मेरे पास हैं। गंगा में फेंकी गई मुदाएं नकली हैं। आप लोग शांति से बैठ जाइए।’ जब सब लोग बैठ गए तो नवाब ने पूछा, ‘आप ने यह तमाशा क्यों किया? धन के लालच में तो लोग एक दूसरे की जान भी ले सकते हैं।’ नानक ने कहा, ‘मैंने जो कुछ किया वह आपके प्रश्न का उत्तर था। आप ने देख लिया कि प्रवचन सुनते समय लोग सब कुछ भूल कर भक्ति में डूब जाते हैं। लेकिन माया लोगों को सर्वनाश की ओर ले जाती है। प्रवचन लोगों में शांति और सद्भावना का संदेश देता है मगर दौलत तो विखंडन का रास्ता है।‘ नवाब को अपनी गलती का अहसास हो गया।