बेजोड़ हौसला
बात उस समय की है, जब भारत स्वतंत्र नहीं हुआ था| एक बालक था| उसके अंदर देश-भक्ति कूट-कूटकर भरी थी| वह उन लोगों की बराबर मदद करता था, जो आजादी के दीवाने थे और गुलामी की जंजीरें तोड़ने के लिए जी-जान से जुटे थे|
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उसकी मां ने अपने बेटे को देश-भक्ति के रंग में रंगे देखा तो उसे बड़ी खुशी हुई, साथ ही उसके मन में यह डर भी हुआ कि कहीं वह पुलिस के हाथ में पड़ जाने पर घबरा न जाए और उन लोगों के नाम-पते न बता दे, जो छिपकर काम कर रहे थे|
एक दिन मां ने लड़के को अपना डर बताया तो उसने बड़ी दृढ़ता से कहा – “मां, तुम बेफिक्र रहो| मैं घबराऊंगा नहीं|”
बालक फिर भी बालक था| मां को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ, बोली – “मैं तेरा इम्तहान लूंगी|”
इसके बाद मां ने एक दीया जलाया और कहा – “इस पर अपनी उंगली रख दे|”
लड़का एक क्षण भी नहीं झिझका| उसने फौरन अपनी उंगली बत्ती की लौ के ऊपर कर दी| उंगली जलती रही, पर उस लड़के के मुंह से उफ् तक नहीं निकली| वह बराबर मुस्कराता रहा|
बालक का हौसला देखकर मां का जी भर आया| उसने उसे सीने से लगा लिया और दिल खोलकर आशीर्वाद दिया| लड़का अपने काम में दूने उत्साह से जुट गया|
यही लड़का अशफाकुल्ला आगे चलकर भारत का महान क्रांतिकारी बना| हंसते हुए वह गाता था –
‘हे मातृभूमिकि, तेरी सेवा किया करूंगा|
फांसी मिले मुझे या हो जन्म-कैद मेरी
बंशी बजा-बजाकर तेरा भजन करूंगा|’
जब काकोरी षड्यंत्र के अपराध में अशफाकुल्ला को फांसी की सजा मिली और उसके गले में रस्सी का फंदा डाला गया, तब वे ऐसे प्रसन्न थे मानो उनके जीवन की सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो गई हो|