बड़प्पन

बार की बात है संयुक्त राज्य अमेरिका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन घोड़े पर नगर की स्थिति देखने चले|

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रास्ते में एक भवन का निर्माण-कार्य चल रहा था| कुछ मजदूर मिलकर एक बड़ा पत्थर उठाकर इमारत पर ले जाने की कोशिश कर रहे थे|

उन मजदूरों का जमादार, उन्हें ललकार रहा था, परंतु किसी भी तरह खुद सहारा नहीं दे रहा था| राष्ट्रपति वाशिंगटन यह सब देखकर ठिठक गए| उस जमादार से कहा- “इन मजदूरों की मदद करो, अकेले आदमी की मदद से यह भारी पत्थर नहीं उठ पाएगा|” जमादार बोला- “मैं जमादार हूँ, मैं दूसरों से काम लेता हूँ, खुद मजदूरी नहीं करता|”

जॉर्ज वाशिंगटन घोड़े से कूद गए| तेजी से उन्होंने उन मजदूरों की मदद की| उनके सहारा देते ही पत्थर उठ गया| अपने घोड़े पर बैठते ही उन्होंने कहा- “सलाम जमादार साहब, भविष्य में कभी तुम्हें एक आदमी की कमी मालूम पड़े तो राष्ट्रपति भवन में जाकर जॉर्ज वाशिंगटन को याद कर लेना|” यह सुनते ही जमादार राष्ट्रपति के पैरों पर गिर पड़ा, उसने अपने व्यवहार के लिए क्षमा माँगी| राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन ने कहा- “मेहनत करने से कोई छोटा नहीं बन जाता| सच्ची नम्रता में ही मानवता की सच्ची सेवा है| अपने साथी मजदूरों को सहारा देने से तुम छोटे नहीं बनोगे| यदि तुम अपना व्यवहार बदलो, तभी तुम्हें क्षमा मिल सकती है| अपने से छोटों को सच्ची मदद देने से ही तुम्हारा बड़प्पन आदर पाएगा| इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि छोटे कार्य करने से ही मनुष्य बड़ा बनता है|

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