अपंग कौन
बहुत समय पहले की बात है| किसी नगर में एक सेठ रहते थे| उनके पास अपार संपत्ति थी, लंबी-चौड़ी हवेली थी, नौकर-चाकरों की सेना थी, भरापूरा परिवार था| सब तरह के सुख थे, पर एक दुख था|
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सेठ को रात को नींद नहीं आती थी, कभी आंख लग भी जाती तो भयंकर सपने आते| सेठ को बड़ी बेचैनी रहती| उन्होंने बहुतेरा इलाज कराया, लेकिन रोग घटने के बजाय बढ़ता ही गया|
एक दिन एक साधु उस नगर में आए| वे बहुत पहुंचे हुए साधु थे| लोगों के दुख दूर करते थे|
सेठ को पता लगा तो वह भी उनके पास गए और अपनी विपदा उन्हें कह सुनाई| बोले – “महाराज, जैसे भी हो मेरा कष्ट दूर कर दीजिए|”
साधु ने कहा – “सेठजी, आपके रोग का एक ही कारण है और वह यह कि आप अपंग हैं|
सेठ ने विस्मय से उनकी ओर देखा| पूछा – “आप मुझे अपंग कैसे कह सकते है? यह देखिए, मेरे अच्छे-खासे हाथ पैर हैं|
साधु ने हंसकर कहा – “अपंग वह नहीं होता जिसके हाथ-पैर नहीं होते| वास्तव में अपंग तो वह है जो हाथ-पैर होते हुए भी उनका इस्तेमाल नहीं करता| बोलो, शरीर से तुम कितना काम करते हो?”
सेठ क्या जवाब देते! वे तो हर छोटे-बड़े काम के लिए नौकर पर निर्भर करते थे|
साधु ने कहा – “अगर तुम अपने रोग से बचना चाहते हो तो हाथ-पैर की इतनी मेहनत करो कि थककर चूर हो जाओ| तुम्हारी बीमारी दो दिन में दूर हो जाएगी|”
सेठ ने यही किया| साधु की बात सही निकली| दूसरे दिन रात को सेठ को इतनी गहरी नींद आई कि वह चकित रह गए|