अंगूर खट्टे हैं
एक लोमड़ी थी| एक दिन वह बहुत भूखी थी| वह भोजन की खोज में इधर-उधर घूम रही थी| उसे एक बाग में अंगूर की एक बेल दिखाई दी जिस पर पके हुए अंगूर लटक रहे थे|
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पके हुए अंगूरों को देखकर उसके मुहँ में पानी भर आया| उसन सोचा आज अंगूर खाकर भूख मिटाई जाये| अंगूर को तोड़ने के लिए लोमड़ी कई बार उछली परन्तु वह उन तक पहुँचने में असफल रही| अंगूर बहुत ऊँचाई पर लगे हुए थे| एक बार उछलते-उछलते वह धड़ाम से भूमि पर गिर पड़ी जिससे उसके शरीर में चोट भी लग गई| उसे बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई और वह वहाँ से चुपचाप चल दी|
एक खरगोश यह सब खेल देख रहा था| वह लोमड़ी के सम्मुख आकर बोला-लोमड़ी मौसी अंगूर को खाये बिना ही चल दी| अंगूर नहीं खाओगी| लोमड़ी बोली-नहीं, अंगूर खट्टे है| यदि मैं इन्हें खाऊँगी तो बीमार पड़ जाऊँगी| खरगोश बोला-अंगूर तोड़ नही सकती तो कहती है कि अंगूर खट्टे हैं|
शिक्षा- अपनी असफलता के लिए दूसरों को दोष देना अनुचित है|