अनुपम बलिदान
एक शिकारी था| वह बड़ा ही क्रूर और निर्दयी था| वह पक्षियों का हनन करके उन्हें खा जाता था| एक दिन की बात है कि उसके जाल में एक कबूतरी फंस गई| वह उसे लेकर चला तो बादल घिर आए|
“अनुपम बलिदान” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio
जोर की वर्षा होने लगी| पास ही पीपल का एक घना पेड़ था| शिकारी उस पेड़ के नीचे ठहर गया| संयोग से उस पीपल के कोटर में एक कबूतर रहता था| यह वही कबूतर था, जिसकी कबूतरी को उसने पकड़ लिया था| पत्नी के विरह में कबूतर बेहाल होकर विलाप कर रहा था| कबूतरी पति के प्रेम को देखकर गद्गद हो गई| उसे लगा, उसका जीवन धन्य हो गया है| उसने पति से कहा – “मुझे इस शिकारी ने पकड़ लिया है, पर तुम मेरी चिंता मत करो| यह मेहमान हमारे घर आया है इसका ध्यान रखो|”
शिकारी सर्दी के मारे कांप रहा था| कबूतर ने लकड़ियां इकट्ठी कीं और उसमें आग जलाई| आग जल जाने से शिकारी को बहुत आराम पहुंचा| शिकारी भूखा था, पर कबूतर के घर में अन्न का एक दाना भी नहीं था| कबूतर सोचने लगा कि क्या करे! सोचते-सोचते उसे एक उपाय सूझा| अपने शरीर से शिकारी की भूख शांत करने के लिए वह स्वयं आग में कूद पड़ा| यह देखकर कबूतरी को पति के त्याग से जहां संतोष हुआ, वहां उसके बिछोह से उसका हृदय दग्ध हो गया|
उधर शिकारी को काटो तो खून नहीं! जिन पक्षियों को मारकर वह खा जाता था, उन्हीं में से एक ने उसके साथ कितना बड़ा उपकार किया| सिर्फ उसकी भूख मिटाने के लिए अपने को बलिदान कर दिया| शिकारी को अपने दुष्कृत्य पर बड़ी ग्लानि हुई| उसकी आत्मा चीत्कार करने लगी| उसने झट जाल खोलकर कबूतरी को मुक्त कर दिया|
शिकारी के चंगुल से छूटकर जब कबूतरी बाहर आई, तो उसके मन में एक ही बात थी, जब उसका पति नहीं रहा तो वह जीकर क्या करेगी| उसके बाद उस पतिव्रता ने जो किया, उसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता| वह उड़ी और एक दम आग में कूद पड़ी| कहानी पुरानी है, पर उसकी चीख आज भी नहीं है| मनुष्य की सोई चेतना को जगाने के लिए वह आज भी बहुत-कुछ कहती है|