अनोखी तरकीब

देवधर और मंगल की मित्रता ऐसी थी, जैसे दोनों एक ही शरीर के दो अंग हों | यदि एक को चोट लगती तो तकलीफ दूसरे को होती | वे दोनों बचपन से ही मित्र थे |

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अब उनकी मित्रता इतनी पुरानी हो चुकी थी कि लोग उसकी दोस्ती का उदाहरण देते थे | देवधर और मंगल बड़े हो चुके थे | दोनों का अलग-अलग व्यापार था | एक दिन दोनों ने तय किया कि वे दोनों मिलकर व्यापार करेंगे |

फिर दोनों ने मिलकर व्यापार शुरू कर दिया | उनका व्यापार चल निकला और दोनों खूब अमीर हो गए | वे ठाठ-बाट से रहने लगे | धीरे-धीरे एक समय आया कि दोनों का विवाह हो गया |

उनको साथ-साथ व्यापार करते 7-8 वर्ष बीत चुके थे | तभी देवधर के मन में न जाने कहां से बेईमानी आ गई और वह व्यापार में हेरा-फेरी करने लगा | मंगल बहुत सीधा और नेक इंसान था | उसे इस गड़बड़ी की भनक तक नहीं लगी | देवधर व्यापार में घाटा दिखाता जा रहा था | एक दिन ऐसा आया कि मंगल उस व्यापार का भागीदार ही नहीं रहा | मंगल ने ऐसा धोखा जिन्दगी में पहली बार खाया था |

धीरे-धीरे वह बहुत चुप रहने लगा | वह किसी से भी बात नहीं करता था | वह न हंसता था, न बोलता था | इस कारण उसकी पत्नी बहुत परेशान रहने लगी | एक तरफ तो घर में आर्थिक तंगी रहने लगी, दूसरी तरफ मंगल बीमार रहने लगा |

मंगल की पत्नी शन्नो ने डॉक्टर-वैद्य से खूब इलाज कराया, किंतु कोई फायदा नहीं हुआ | किसी डॉक्टर को उसकी बीमारी समझ में नहीं आती थी | मंगल दिन पर दिन कमजोर होता जा रहा था |

दूसरी तरफ देवधर अपने आपमें मस्त था | उसने हेरा-फेरी करके खूब धन जमा कर लिया था | अब अपना अलग व्यापार करके खूब धन कमा रहा था | अपनी पत्नी के लिए उसने ढेरों गहने बनवा दिए थे | गांव के लोग ऐसा विश्वासघात देखकर कानों पर हाथ रख लेते थे | लोगों को देवधर की बेईमानी का खूब पता था, लेकिन कोई भी खुलकर सामने नहीं आता था |

एक दिन मंगल का चचेरा भाई सोमदत्त शहर से आया | वह मंगल की हालत देखकर हैरान रह गया | मंगल की पत्नी ने चिन्तित होते हुए कहा – “देवर जी, अपने भैया का कुछ इलाज कराओ, हम तो गांव में इलाज करवा के हार गए, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ |”

सोमदत्त ने शन्नो से मंगल की हालत के बारे में विस्तार से जानकारी ली और बोला – “भाभी, मंगल का इलाज डॉक्टर-वैद्य के पास नहीं है | उसका इलाज कुछ और ही है |”

फिर सोमदत्त ने शन्नो को बताया कि जब तक देवधर मंगल से माफी नहीं मांगेगा | मंगल ठीक नहीं होगा | परंतु शन्नो ने बताया कि देवधर अब बहुत धनी और घमंडी हो गया है, उसका माफी मांगना नामुमकिन है | हम गरीब उसके सामने टिक नहीं सकेंगे |

सोमदत्त ने कहा कि मैं इस नामुमकिन को मुमकिन करके दिखाऊंगा | मैं बिना धन के ही उसे नीचा दिखाऊंगा | उसने अगले दिन से ही अपनी योजना पर काम करना शुरू कर दिया |

अगले दिन जब देवधर अपने घोड़े पर बैठकर अपनी दुकान जा रहा था तो उसने देखा कि एक आदमी ने उसकी तरफ देखा और जोर से हंस दिया |

देवधर को लगा कि कोई यूं ही हंस रहा होगा | वह थोड़ी ही दूर गया था कि चार लोग खड़े आपस में बातें कर रहे थे | वह जैसे ही उन चारों के सामने से गुजरा, उनमें से एक ने उसकी तरफ देखा और कुछ कहा कि सारे लोग जोर-जोर से हंसने लगे |

देवधर को लगा कि सब लोग उसकी तरफ देखकर हंस रहे हैं | हो सकता है कि उसकी पगड़ी टेढ़ी हो, उसने पगड़ी को ठीक करने का प्रयास किया तो घोड़े से गिरते-गिरते बचा |

अब वह अपनी दुकान पहुंच चुका था | ज्यों ही उसने दुकान का ताला खोला, एक छोटा-सा बालक उधर से जोर-जोर से हंसता हुआ गुजरा | देवधर को अब थोड़ा क्रोध आने लगा था | उसने बालक को बुलाकर पूछा – “ऐ लड़के क्यों हंसता है ?”

लड़के ने कहा – “यूं ही” और चला गया |

देवधर का मन आज दुकान में नहीं लग रहा था | उसे लगता था कि आज जरूर कहीं कोई गड़बड़ है | कभी वह शीशे में देखता, कभी अपने कपड़ों पर निगाह दौड़ाता, परंतु उसे समझ न आता |

दोपहर को एक दाढ़ी वाला व्यापरी उसकी दुकान पर आया  और उससे बड़ा सौदा तय कर लिया | परंतु देवधर का ध्यान आज कहीं और था | उस दाढ़ी वाले व्यापारी ने 2-3 बार अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा और देवधर की ओर देखकर जोर-जोर से हंसने लगा, फिर बोला – “सेठ, सौदा फिर कभी करूंगा |”

देवधर को लगा कि उसकी दाढ़ी में कुछ लगा है, वह बार-बार अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरने लगा | जैसे-तैसे दिन बीता | आज उसका व्यापार में मन नहीं लगा था, इस कारण बिक्री भी कम हुई थी |

घर जाकर देवधर ने सारी बात अपनी पत्नी को बताई, वह सुनकर परेशान हो गई | उसके उसके कपड़ों, पगड़ी व दाढ़ी पर निगाह डाली, उसे सब कुछ ठीक-ठीक लगा |

अगले दिन फिर जब वह कहीं काम से जा रहा था तो फिर उसने लोगों को कानाफूसी करते व हंसते देखा | अब उसे हर समय यही लगने लगा कि हो न हो, लोग उसकी बेईमानी की चर्चा कर रहे हैं | उसने दो-चार बार लोगों की बात सुनने की कोशिश की तो उसे अपने बारे में एक भी शब्द सुनाई नहीं दिया |

अब वह जहां जाता लोग हंसते दिखाई देते | उसने सोचा कि लोग यूं ही उसका मजाक बना रहे हैं, उसे उन सबको सबक सिखाना चाहिए | अगले दिन जब कोई व्यक्ति उस पर हंसा तो वह चिल्ला कर बोला – “पागल, पागल कहीं का |”

उधर से उस व्यक्ति ने भी वही शब्द दोहरा दिए | सुनकर देवधर क्रोध से आगबबूला हो उठा | धीरे-धीरे एक सप्ताह में हालत यह हो गई कि वह जिधर से निकलता लोग कहते – “पागल, पागल कहीं का |” सुनकर वह बौखला उठता और सचमुच पागलों जैसी हरकतें करने लगता | उसका व्यापार मंदा पड़ने लगा | धीरे-धीरे उसकी हालत खराब होने लगी |

अगले दिन गांव के जमींदार के यहां उसके बेटे की शादी थी | जमींदार ने सारे गांव के लोगों को दावत पर बुलाया | देवधर भी खूब अच्छे कपड़े पहन सज-धज कर दावत खाने पहुंचा | सोमदत्त भी वहां पहुंच गया |

जमींदार खुशी से लोगों से मिल रहा था और उनका अभिवादन कर रहा था | सोमदत्त जमींदार के पास जाकर फुसफुसाकर बोला – “आप गांव के सबसे धनी व्यक्ति से नहीं मिलेंगे | ये जो सामने दाढ़ी वाले सज्जन हैं, वो अपने आपको आपसे भी बड़ा जमींदार समझते हैं |”

जमींदार खुशी के मूड में था | बात को मजाक में लेते हुए उसने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा फिर हंस कर देवधर की ओर देखा और बोला – “अरे यह तो बड़ा भला आदमी है |” फिर आगे बढ़ गया | देवधर को लगा कि वह व्यक्ति वही आदमी है जो पहले दिन उसे देखकर हंसा था | उसके बाद ही सब लोग उसकी तरफ देखकर हंसने लगे | हो न हो यह कोई राज की बात है, जो आज जमींदार भी हंस रहा है | वह व्यक्ति उसकी कोई शिकायत कर रहा है या उसकी दाढ़ी में कोई गड़बड़ है | उसने झट से अपनी दाढ़ी में हाथ फेरा और परेशान हो उठा |

वह झट से सोमदत्त से मिलने भागा, परंतु वह तब तक गायब हो चुका था |

अगले दिन सुबह देवधर ने सबसे पहले दाढ़ी-मूंछें साफ करवाईं, फिर सोमदत्त को ढूंढ़ने निकल पड़ा | उसके मन में जमींदार की बात जानने की बेचैनी थी | थोड़ी ही दूर जाने पर उसे सोमदत्त जाता दिखाई दिया | उसने सोमदत्त से रात की बात पूछी तो सोमदत्त ने कहा – “मैं एक ही शर्त पर तुम्हें जमींदार की बात बता सकता हूं | तुम्हें मेरी एक बात माननी पड़ेगी |”

देवधर बोला – “भैया, धन मांगने के अलावा जो तुम कहो वही मानूंगा |” यह सुनकर सोमदत्त देवधर को पास ही मंगल के घर ले गया और बोला – “पहले इनसे माफी मांगो फिर बताऊंगा |”

देवधर ने पलंग पर लेते व्यक्ति से तुरंत माफी मांग ली, “भैया मुझे माफ कर दो |” तो वह व्यक्ति पलंग से उठ कर बैठ गया | उसके चेहरे पर पतली-सी मुस्कान की रेखा खिंच गई | देवधर यह देखकर हैरान रह गया कि वह उसका अपना मित्र मंगल था | उसकी इतनी दुर्बल और बीमार हालत के कारण वह अपने बचपन के मित्र को पहचान नहीं सका था | उसे पश्चाताप होने लगा |

तभी सोमदत्त ने बताया कि जमींदार ने तो उसकी प्रशंसा की थी | लेकिन सोमदत्त पश्चाताप की अग्नि में जल रहा था | उसने अपने मित्र से अपने किए पर पुन: माफी मांगी और गले से लगा लिया |

धीरे-धीरे मंगल अच्छा होने लगा | दोनों में फिर दोस्ती हो गई फिर उनकी दोस्ती जीवन भर चलती रही |