अन्ना का प्रसाद
रोहिताश्व की भूख को देखकर राजा हरिश्चंद्र का धैर्य डगमगाने लगा| संतान का दुःख असहनीय होता है| उन्होंने गंगा के जल में तैरते हुए हंसों को दिखाकर बालक का मन बहलान चाह, परन्तु बच्चा भूख-भूख चिल्ला रहा था|
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अंत में राजा ने कहा, “शैव्या! चलो अन्नापूर्ण के मंदिर में चलते हैं| वंहा कुछ प्रसाद अवश्य मिलेगा, जिसे रोहिताश्व को खिला देना|”
उसी समय अन्नपूर्णा माँ पार्वती देवी एक वृद्धा स्त्री का वेश बनाकर वंहा घाट पर आईं| रोहिताश्व को रोते देखकर वृद्धा ने पूछा, “यह बालक क्यों रो रहा है?”
राजा ने कहा, “माँ! हम परदेसी हैं| नगर में किसी को जानते नहीं| बच्चा भूखा है और हमारे पास कुछ है नहीं, जो हम इसे खिला सकें|”
वृद्धा ने कहा, “मेरे पास माँ अन्नापूर्ण का प्रसाद है| प्रसाद पर तो सभी का एक सामान अधिकार होता है| इसलिए इसे ग्रहण करने में आपको कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए|”
राजा ने शैव्या की ओर देखा और उसकी सहमति पाकर अपनी मौन स्वीकृति दे दी|वृद्धा प्रसाद की पोटली रोहिताश्व को देकर चली गई| उससे रोहिताश्व का पेट भर गया और राजा रानी को भी थोड़ी तृप्ति हुई|