अहिंसा और शान्ति
एक व्यक्ति ने कबूतर और गाय पाल रखे थे| एक दिन कबूतर गाय के पास दाना से अन्न चुगने लगा| गाय बोली, “तुम मार भोजन नहीं खा सकते| जाओ तथा कुछ और खोजो|” कबूतर को आपत्ति अच्छी नहीं लगी|
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उसने गाय के थुथुन पर चोंच मारी| गाय को क्रोध आ गया| उसके नथूने फूल गये| उसने फुफकार भरी| “तुम अहिंसा की प्रतीक हो, तुम्हे ऐसा करना शोभा नहीं देता|
गाय बिगड़ी, “ओ चोर! तुम शान्ति के प्रतीक हो और तुमने मेरे नाक पर आक्रमण किया| भाग जाओ| मेरे अन्न न खाओ|”
कबूतर भी आपा भूल गया| दोनों लड़ने लगे| दोनों ने एक-दूसरे को घायल कर देने की भरपूर चेष्टा की|
शाम को उस व्यक्ति के यहाँ एक विशेष मेहमान आये, उनके भक्षण के लिए कबूतर को पकड़कर मार डाला गया| सुबह में गाय को एक कसाई के हाथ बेंच दिया गया| गाय ने मालिक की ओर देखा, मगर उसने ध्यान नहीं दिया, क्योंकि मनुष्य को अब शान्ति या अहिंसा के प्रतीकों की आवश्यकता नहीं रहीं|