अहंकार का रहस्य
एक राजा था| उसकी एक लड़की थी| जब राजकुमारी बड़ी हुई तो रानी को उसके विवाह की चिंता होने लगी| राजा के महल में एक जमादारिन सफाई करने आती थी| एक दिन रानी को उदास देखकर उसने उनकी उदासी का कारण पूछा, तो रानी ने कहा – “क्या कहूं? लड़की बड़ी हो गई है| उसके ब्याह की चिंता मुझे रात-दिन खाए जा रही है|”
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सुनकर जमादारिन हंस पड़ी – “रानी जी, आप चिंता क्यों करती हैं, मेरा लड़का जो है|”
उसकी बात सुनकर रानी को बड़ा बुरा लगा| उसने कहा – “खबरदार, जो ऐसी बात मुंह से निकाली!”
जमादारिन चली गई| अगले दिन उसने पूछा – “कोई लड़का मिला?”
रानी ने कहा – “नहीं|”
जमादारिन बोली – “आप तो बेकार परेशान होती हैं, मेरे लड़के की बराबरी कोई नहीं कर सकता|”
रानी और ज्यादा नाराज हुई और उसे महल से निकलवा दिया| रात को रानी ने राजा को जमादारिन की गुस्ताखी उन्हें बताई| राजा ने पूछा – “वह कहां खड़े होकर बात कर रही थी?” रानी ने बता दिया|
राजा ने कहा – “रानी तुम समझती नहीं वो वाक्य जमादारिन नहीं और कोई बोलता था|”
रानी ने आश्चर्य से कहा – “और कोई वहां था ही नहीं|”
राजा ने कहा – “अच्छा!”
अगले दिन राजा ने वह जगह खुदवाई तो वहां अशर्फियों से भरे कलश निकले| कलश निकलवाकर राजा ने रानी से कहा – “अब तुम जमादारिन से बात करना|”
दूसरे दिन जमादारिन आई तो रानी ने बेटी के ब्याह की चर्चा चलाई| जमादारिन ने कोई जवाब नहीं दिया| रानी ने कहा – “अरे तेरे लड़के का क्या हुआ?”
जमादारिन गिड़गिड़ाकर बोली – “रानी जी, कहां आप और कहां हम!”
रानी समझ गई कि जमादारिन के अहंकार का रहस्य क्या था|