अभिमन्यु-वध

अभिमन्यु-वध

युद्ध के तेरहवें दिन अर्जुन ने विचार किया कि वे द्रोण की सेना के भाग को पीछे हटाकर अपनी सेना के दूसरे भाग की ओर सहायता करने बढ़ेंगे क्योंकि उन्हें यह विश्वास था कि युधिष्ठिर अब पूर्ण रूप से सुरक्षित है|

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अर्जुन के जाते ही द्रोण अकस्मात अपनी सेना को चक्रव्यूह के रूप में लेकर आ गए| युधिष्ठिर की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें| केवल अर्जुन ही चक्रव्यूह को भेदना जानता था| भीम, नकुल और सहदेव चिंतित थे| वे व्यूह को भेदने के लिए जाना चाहते थे| तभी अभिमन्यु वायुवेग से वहाँ आ पहुँचा और बोला, “तात! आप चिंता न करें| मुझे चक्रव्यूह भेदना आता है| हाँ, मुझे उससे बाहर निकलने का भेद नहीं मालूम| कृपया मुझे आज्ञा दें|”

अन्य वीरों को अभिमन्यु के साथ रहने की आज्ञा देकर युधिष्ठिर ने भारी मन से अभिमन्यु की प्रार्थना स्वीकार कर ली|

चक्रव्यूह के मुख्य द्वार तक सभी साथ-साथ थे| और व्यूह के घेरे को तोड़ता हुआ वीर अभिमन्यु आगे बढ़ता गया| जयद्रथ ने अन्य वीरों-भीम, द्रुपद और सात्यकि को व्यूह के बाहर ही रोक लिया| अभिमन्यु अकेला व्यूह में फंस गया|

दूसरे द्वार पर द्रोणाचार्य के धनुष की डोरी काट, अभिमन्यु तीसरे द्वार पर कर्ण के सामने थे| कर्ण चकित था कि इतने महारथियों से बचकर यह आया कैसे! अभिमन्यु ने अपने तीक्ष्ण बाणों से कर्ण को अचेत कर दिया| वह वेग से बाण वर्षा कर, पांचवें द्वार तक पहुँच गया| दुर्योधन और दुशासन चिंतित थे कि अभिमन्यु तो सातों द्वार भेद कर लौट जाएगा| सलाह करने पर कर्ण ने कहा-हम सातों इसे घेरकर मारें|

यह युद्ध नहीं, अन्याय था| अकेला बालक घिर गया| सारथी ने बहुत समझाया पर अभिमन्यु अडिग युद्ध करता रहा| पहले सारथी गिरा, फिर घोड़ा| धीरे-धीरे उसके अस्त्र भी नष्ट हो चुके थे| उसने जैसे ही रथ का पहिया उठाया कि दुर्योधन-पुत्र लक्ष्मण ने सिर पर वही गदा से प्रहार किया| अभिमन्यु ने गिरते-गिरते लक्ष्मण के सिर पर वही गदा दे मारी| वह वहीं ढेर हो गया|

जब अभिमन्यु लौटकर नहीं आया तब युधिष्ठिर उसकी सुरक्षा के लिए चिंतित हो उठे| उनका भय सत्य निकला| अभिमन्यु ने वीरगति प्राप्त की थी|

साँझ के समय अर्जुन कृष्ण के साथ शिविर लौटे| वातावरण की चुप्पी से वे समझ गए कि अभिमन्यु नहीं लौटा है| वे चिंतित हो उठे| जब उन्हें विदित हुआ की अभिमन्यु वीरगति को प्राप्त हो चूका है तो उनके धीरज का बाँध टूट गया, सहनशक्ति की सीमा समाप्त हो गई| सिसकते हुए वे चिल्लाए, “मेरा पुत्र, मेरा बेटा, मेरा पुत्र|” और तत्काल अर्जुन ने एक भयंकर शपथ ली| “कल मैं जयद्रथ का वध करूँगा| कल सूर्यास्त से पूर्व मैं उसका वध करूँगा, अन्यथा मैं आत्महत्या कर लूँगा|”

रानी की