अब छाछ को सोच कहा कर है!
एक राजकुमार था| उसके पाँच-सात मित्र घोड़ों पर घूम रहे थे| वहाँ बहुत-सी गूजर-स्त्रियाँ दूध, छाछ, दही आदि की बिक्री करने को जा रहीं थीं|
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राजकुमार को भगवान् श्रीकृष्ण की याद आ गयी कि वे दूध-दही लूटा करते थे तो हम भी आज वैसा ही करें| एक तमाशा कर लें, फिर उनको दाम दे देंगे| राजकुमार और उसके साथियों ने उनके मटके फोड़ दिये| गूजरियाँ बेचारी रोने लगीं|
उनमें से एक गूजरी ऐसी थी, जिसका मटका फूट गया, छाछ बिखर गयी, फिर भी वह हँस रही थी! राजकुमार ने उससे पूछा कि तू रोयी नहीं, क्या बात है? उसने कहा कि महाराज! मेरी बात बहुत लम्बी है! मैं छाछ गिरने का क्या शोक करूँ? राजकुमार ने उससे कहा कि अपनी बात सुनाओ| वह कहने लगी-
मैं अमुक शहर के एक सेठ की पत्नी थी और मेरी गोद में एक बालक था| वे सेठ कमाने के लिये दूसरे देश में चले गये| वहाँ के राजा की नियत खराब थी| मेरी छोटी अवस्था थी और सुन्दर रूप था| राजा ने मेरे पर खराब दृष्टि कर ली और कहा कि अमुक दिन तेरे को आकर मिलना ही पड़ेगा, तुम कब आओगी, जवाब दो| मैंने कहा कि अभी ठहरो| मैंने अपने पति को पत्र भेजा कि जल्दी आओ, मेरे पर ऐसी आफत आयी है| पति आ गया| उससे सारी बात कही और आपस में सलाह की कि क्या किया जाय? सेठ ने कहा तुम राजा को समय दे दो| मैंने राजा के पास समाचार भेज दिया कि आप शहर के बाहर अमुक जगह रात में आ जाओ, पर शर्त यह है कि उस स्थान के मिल भर नजदीक में कोई अन्य व्यक्ति न रहे| राजा ने स्वीकार कर लिया| हम दोनों पति-पत्नी घर से निकल गये कारण कि यहाँ टिक नहीं सकेंगे| मैं रात्रि में वहाँ तलवार लेकर गयी| पति को एक टूटे-फूटे मकान (खँडहर)-में छिपने के लिये कह दिया| जब राजा आया तो मैंने तलवार से उसको मार दिया और भागकर पति के पास गयी| वहाँ जाने पर मैंने पति को मरा हुआ पाया! उसको जहरीले साँप ने काट लिया था| फिर तो मैं अकेली वहाँ से भागी कि अगर पकड़ी गयी तो लोग मेरे को मार देंगे| लड़का पीछे छूट गया|
आगे भागते हुए जंगल आ गया तो वहाँ डाकू मिल गये| उन लोगों ने मेरे को पकड़ लिया, मेरे सब गहने छीन लिये और वैश्या के घर ले जाकर बिक्री कर दिया| अब मैं वहाँ रहने लगी| उधर दूसरा राजा बैठा तो उसने मेरे लड़के को पालकर बड़ा किया| मेरा लड़का वहीं राज्य में नौकरी करने लगा| इधर वेश्याओं के संग के प्रभाव से मैं भी वैश्या हो गयी| एक बार वह लड़का मेरे यहाँ आया और रातभर रहा| मेरे को वहम हो गया कि यह कौन है? सुबह होते ही पूछा तो उसने अपना नाम पता बताया, तब पता लगा कि अरे! यह तो मेरा ही बेटा है! मेरे को बड़ी ग्लानि, बड़ा दुःख हुआ कि मैं क्या थी और कुसंग के प्रभाव से क्या हो गयी! पण्डितों से पूछा कि ऐसा पाप किसी से हो जाय तो क्या करे? उन्होंने बताया कि चिता जलाकर आग में बैठ जाय| विचार आया कि चिता में बैठ जाऊँगी तो पीछे से गंगा जी में फूल कौन डालेगा? इसलिये गंगा के किनारे लकड़ियाँ इकट्ठी करके बैठ गयी और आग लगा दी| लकड़ियाँ जलने लगीं| इतने में पीछे से बाढ़ आ गयी| आग बूझ गयी और एक लकड़ी पर बैठ-बैठ एक गाँव-के किनारे पहुँच गयी| उस गाँव में गूजर बसते थे| अब वहाँ उनकी चीज बिक्री करके काम चलाती हूँ| आज छाछ लेकर आयी थी| छाछ गिर गयी तो अब इसकी चिन्ता क्या करूँ?
हत्वा नृपं पतिमवेक्ष्य भुजंगदष्टं-
देशान्तरे विधिवशाद गणिकां च याता|
पुत्रं प्रति समधिगम्य चिंता प्रविष्टा
शोचामि गोपगृहिणी कथमद्य तक्रम्||
नृप मार चली अपने पिव पै, पिव भुजंग डस्यो जो गयो मर है|
मग चोर मिले उन लूट लई, पुनि बेच दई गनिका घर है|
सुत सेज रमी, चिता पै चढ़ी, जल खूब बह्यो सरिता तर है|
महाराज कुमार भई गुजरी, अब छाछ को सोच कहा कर है||
जीवन में ऐसी घटनाएँ घटी है, क्या-क्या दशा हुई है, अब थोड़े-से नुकसान में क्या चिन्ता करूँ? ऐसी बातें तो होती रहती हैं और बीतती रहती हैं| अब छाछ गिर गयी तो क्या हो गया! हमारे न जाने कितने जन्म हुए हैं और उनमें क्या-क्या दशा हुई है! उनमें कभी बेटा मर गया, कभी पति मर गया, कभी पत्नी मर गयी| कभी धन आया, कभी धन चला गया| ये सब कई बार मिले और कई बार बिछुड़े| हवा चलती है तो कहाँ-कहाँ का फूस आकर इकट्ठा हो जाता है और दूसरे झोंके में अलग हो जाता है| इसमें नयी बात क्या हो गयी! संसार में सब आने-जाने वाले हैं| इनके लिये क्या चिन्ता करें?