आपसी फूट का नतीजा
पानीपत के युद्धक्षेत्र की कहानी है| एक ओर मैदान में आक्रमणकारी अहमदशाह अब्दाली की फौज खड़ी थी और दूसरी ओर सामने मराठों की फ़ौज थी|
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मराठों की फौज संख्या और हथियारों की दृष्टि से विदेशी आक्रमणकारियों के मुकाबले कहीं बड़ी थी| दोनों ही पक्ष एक-दूसरे की ताकत और कमजोरी का ठीक-ठीक अंदाजा करना चाहते थे, इसलिए तुरंत हमला करने से झिझक रहे थे| अब्दाली का इरादा था कि कोई ऐसी कोशिश की जाए जिससे मराठों को खाना न मिले और वह उन पर अचानक हमला कर उन्हें पराजित कर दे| एक दिन शाम के समय अहमदशाह अब्दाली ने देखा कि मराठों की फ़ौज के शिविर में स्थान-स्थान पर आग की लपटें निकल रही हैं| उसने अपने सिपहसालार से पूछा- “ये आग की लपटें कैसे चमक रही हैं? यह सब क्या हो रहा है?”
अब्दाली के सिपहसालार ने उत्तर दिया- “इन लोगों में जातिभेद हैं- ये एक-दूसरे के हाथ का खाना नहीं खाते, इसलिए अलग-अलग रसोई बना रहे हैं|”
यह सुनकर अहमदशाह अब्दाली बोला- “तब तो हमने मैदान जीत लिया|”
उसने बिना समय खोए तुरंत हमला कर दिया और सचमुच ही भारतीय सैनिकों की आपसी फूट एवं मतभेदों से पानीपत के मैदान में अहमदशाह अब्दाली जीत गया| इस कहानी से हमें साफ़ जाहिर होता है कि घर की फूट जगत् की लूट बनती है|