अकृतज्ञ मनुष्य
वर्षो पहले किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था| वह नौकरी की खोज में था| पर कोशिश करने पर भी उसे कोई ढंग का काम नहीं मिला पाया|
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गरीबी से तंग आकर ब्राह्मण ने घर से बाहर जाने का निश्चय किया|
दूसरे ही दिन सुबह वह अपने बीबी-बच्चो के जागने से पहले ही चुपचाप घर से निकल गया| पर वह जाये तो कहां जाये? आखिर उसने एक राह पकड़ी और चल दिया|
चलते-चलते वह एक घने जंगल में पहुंचा| वह थककर चूर हो गया था| भूख-प्यास से उसका हाल बेहाल था| वह प्यास बुझाने के लिए पानी की खोज करने लगा| आखिर उसे एक कुआं दिखाई दिया| उसने कुएं के पास आकर भीतर झांका| देखता क्या है कि कुएं के भीतर एक शेर, एक बन्दर, एक सांप और एक आदमी गिरा हुए हैं|
ब्राह्मण पर नजर पड़ते ही शेर ने कहा, “ओ भलेमानस, कृपा करके मुझे इस कुएं से निकाल दो| मेरे बच्चे घर बैठे मेरा इन्तजार कर रहे होंगे| ईश्वर तुम्हारा भला करे| दया करके मुझे बाहर खीँच लो|”
ब्राह्मण ने कहा, “तुमको बाहर खीँच लूं? एक शेर को? ना बाबा, ना| अगर मैंने तुम्हें बाहर निकाल तो तुम्हारा क्या भरोसा कि तुम मुझे मारकर न खा जाओगे|”
इस पर शेर ने कहा, “भलेमानस, डरो मत! मै वायदा करता हूं कि तुमको कोई नुकसान नहीं पहुंचाऊंगा| मेरे भाई, मुझ पर तरस खाओ| मुझे बचा लो|”
ब्राह्मण ने मन ही मन सोचा कि इसे निकल ही लूं| परोपकार करना अच्छा होता है| उसने कुएं की जगत पर चढ़कर शेर को बाहर खीँच लिया|
शेर ने बाहर आते ही ब्राह्मण को धन्यवाद दिया और दूर एक पहाड़ी की ओर इशारा करके कहा, “वह जो पहाड़ दिखाई दे रहा है, मै वहीँ एक गुफा में रहता हूं| आप कभी मेरे यहां अवश्य आइये| शायद मै आपके कोई काम आ सकूं|”
उसी समय कूएं के अन्दर से बन्दर ने भी पुकारा, “हे ब्राह्मण देवता, कृपाकर मुझे भी बाहर निकाल लीजिये|”
ब्राह्मण ने आगे बढ़कर बन्दर को भी खीँच लिया|
बन्दर ने उसे भी धन्यवाद देकर कहा, “अगर आपको कभी खाने की जरुरत हो तो मुझे अवश्य बताइएगा| मैं आपको तरह-तरह के फल खिला सकता हूं| मेरा घर सामने की पहाड़ी के ठीक नीचे है|”
तभी कुएं के अन्दर से सांप ने आवाज दी, “कृपाकर मुझे भी बचा लीजिए|”
ब्राह्मण ने चौककर कहा, “तुम्हें? तुम तो सांप हो, कही मुझे डस लिया तो?” सांप ने कहा, “नहीं, नहीं, मै आपको नहीं काटूंगा, अपने बचाने वाले को भी कभी कोई मरता है? कृपाकर मेरी जान बचाओ|”
ब्राह्मण ने सांप को भी बाहर खीँच निकला|
सांप ने कहा, “इस मेहरबानी के लिए धन्यवाद| अगर आपको कभी किसी मुसीबत का सामना करना पड़े तो मुझे पुकार लीजिए| आप जहां भी होंगे मै आपके पास आ जाऊंगा और जैसे भी बन पड़ेगा आपकी सहायता करूंगा|”
फिर शेर, बन्दर और सांप ने ब्राह्मण से विदा ली| जाने से पहले सबने ब्राह्मण को कुएं में गिरे हुए आदमी के बारे में चेतावनी दी| एक ने कहा, “इस आदमी की जरा भी सहायता न कीजियेगा|”
दूसरा बोला, “अगर करेंगे तो आप स्वयं मुसीबत में पड़ जायेंगें|”
उन तीनों के जाते ही कुएं के अन्दर गिरे हुए आदमी ने चिल्लाना शुरू कर दिया और गिड़गिड़ाकर बाहर निकालने के लिए चिरौरी करने लगा|
ब्राह्मण को दया आ गई| उसने उसे भी कुएं से बाहर खीँच लिया|
उस आदमी ने बाहर आकर कहा, “बहुत-बहुत धन्यवाद| मै एक गरीब सुनार हूं और पास ही के शहर में रहता हूं| कभी मेरे योग्य कोई सेवा हो तो अवश्य कहियेगा|” इतना कहकर वह आदमी राह चल दिया|
ब्राह्मण फिर अपनी यात्रा पर चल पड़ा| वह कई दिनों तक मारा-मारा फिरता रहा| पर उसे कोई काम न मिला| वह बहुत निराश हो गया| अचानक ही उसे शेर, बन्दर, सांप और सुनार की याद आई| उसने सोचा क्यों न एक बार उनसे भी मिलकर देख लिया जाये|
सबसे पहले वह बन्दर के पास गया| बन्दर ने ब्राह्मण का बड़ा स्वागत किया| उसके खाने के लिए उसके सामने आम, अंगूर, अनन्नास, केले और तरह-तरह के फलों का ढेर लगा दिया| ब्राह्मण ने छककर फल खाये|
भरपेट भोजन करने के बाद ब्राह्मण ने इस स्वागत-सत्कार के लिए बन्दर के प्रति बड़ा आभार प्रकट किया| इस पर बन्दर ने कहा, “मेरे घर में आपका हमेशा ही स्वागत होगा|”
अब ब्राह्मण शेर की परीक्षा करना चाहता था| उसके पूछने पर बन्दर ने उसे शेर के घर का रास्ता बता दिया|
ब्राह्मण को देखते ही शेर उसका स्वागत करने दौड़ा आया| वह अपने बचाने वालो को भूला नहीं था| उसने ब्राह्मण को एक सोने का कीमती हार और कई गहने दिये| ये गहने उसे एक राजकुमारी से मिले थे| गहने पाकर ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ और शेर को धन्यवाद देकर आगे बढ़ गया|
रास्ते में उसने सोचन, ‘आखिर मेरी यात्रा सफल ही हो गई| मै इन गहनों को अच्छे दामों में बेचकर घर लौट जाऊंगा| मुझे वापस आया देख मेरी भी खुश हो जायेगी| गहने बेचकर खूब पैसा मिलेगा और फिर तो हम सुख के दिन बितायेंगे| मगर गहनों को बेचा कहां जाये? तभी उसे सुनार की याद आई| वह सीधा सुनार के घर की ओर चल दिया|
ब्राह्मण को देखकर सुनार बहुत खुश हुआ| उसने ब्राह्मण से पूछा, “आपका यहां कैसे आना हुआ?”
“मै आपको एक कष्ट देने आया हूं| मेरे पास कुछ गहने हैं| मैं चाहता हूं कि आप इन्हें बिकवा दें,” ब्राह्मण ने कहा|
सुनार हार और गहने परखने लगा| फिर उसने कहा, “इसमें कष्ट की क्या बात है, मित्र| मै आपकी सहायता अवश्य करूंगा| लेकिन इस बारे में पहले एक और सुनार की राय ले लेना अच्छा होगा| आप कुछ देर आराम से बैठिये| मै अभी उससे मिलकर आता हूं|”
सुनार ने अपनी पत्नी को बुलाया और मेहमान का आदर-सत्कार करने को कहा और स्वयं गहने लेकर बाहर चला गया|
गहने लेकर वह सीधे राजमहल में पहुंचा| उसने राजा से भेंट की और उसे ब्राह्मण के गहने दिखाये|
उसने कहा, “महाराज, ये वही गहने है जिन्हें मैंने राजकुमारी के लिए बनाया था| एक आदमी इन्हे बेचने के लिए मेरे पास लाया है| मै उसे अपने घर बैठाकर ये गहने दिखाने आपके पास दौड़ा आया हूं|”
यह देखकर राजा को बड़ा गुस्सा आया| उसने कड़कर पूछा, “कौन है वह? उस बदमाश ने मेरे बेटे की हत्याकर गहने छीने हैं|
सुनार ने कहा, “महाराज, वह एक ब्राह्मण है और अभी मेरे ही घर में बैठा हुआ है|”
राजा ने सिपाहियों को पुकारा| उसकी आवाज सुनते ही वे दौड़े आये|
राजा ने हुक्म दिया कि इस सुनार के घर में जो आदमी बैठा है उसे अभी और इसी समय पकड़कर जेल में डाल दो| उसकी क्या सजा होगी इसका फैसला कल किया जायेगा|
सिपाहियों ने ब्राह्मण को पकड़कर जेल में बंद कर दिया| यह अचानक उलटी घटना ब्राह्मण की समझ में नहीं आई|
उसने एक पहरेदार से पूछा, “तुमने आखिर मुझे पकड़ा क्यों है?”
पहरेदार ने जवाब दिया, “क्योंकि तुमने राजकुमार की हत्या करके उसके गहने लूटे हैं| तुम्हारे अपराध की सजा मौत से कम न होगी|”
पहरेदार की बात सुनते ही ब्राह्मण हक्का-बक्का रह गया| हत्या के इस झूठे आरोप से वह घबरा गया| मगर बेचारा करता भी क्या? वहां उसकी मदद करने वाला कौन था|
इस मुसीबत के समय ब्राह्मण को सांप की याद आई जिसे उसने कुएं से बाहर निकला था| उसने सांप को पुकारा| पुकारते ही सांप उसके पास आ गया|
सांप ने कहा, “कहो भाई, मै तम्हारी क्या सेवा कर सकता हूं?”
ब्राह्मण ने कहा, “इन लोगों ने मुझे जेल में बंद कर दिया है| अब ये मुझे फांसी देने वाले है| मैंने किसी की हत्या नहीं की|”
फिर ब्राह्मण ने गहने प्राप्त होने से लेकर जेल में बंद होने तक की सारी घटना कह सुनाई और बोला, “मुझे ऐसे अपराध के लिए फांसी दी जायेगी जो मैंने नहीं किया है”
ब्राह्मण की बात सुनकर सांप विचार करने लगा| सोचकर उसने कहा, “मुझे एक उपाय सुझा है|”
ब्राह्मण ने बड़ी उत्सुकता से पूछा, “क्या उपाय है?”
सांप ने कहा, “मैं चुपके से रानी के कमरे में जाऊंगा और उसे काट लूंगा| मेरे जहर से रानी बेहोश हो जायेगी| फिर चाहे कोई कैसा उपचार करे, उसे होश नहीं आयेगा|”
ब्राह्मण ने पुछा, “फिर क्या होगा?”
सांप ने ब्राह्मण को समझाया, “मेरे जहर का असर तब तक रहेगा जब तक कि तुम अपने हाथों से रानी का माथा नहीं छुओगे|”
ब्राह्मण की कोठारी से निकलकर सांप महल की ओर चल पड़ा| वहां पहुंचकर वह चुपके से रानी के कमरे में घुस गया और रानी को काटकर वहां से निकल भागा| सांप के काटते ही रानी बेहोश होकर गिर पड़ी|
रानी के बेहोश होते ही महल में तहलका मच गया| कुछ ही देर में यह बुरी खबर राज्य भार फैल गई| खबर सुनकर प्रजा बहुत दुखी हो गई| सब जगह यही चर्चा होने लगी कि रानी को सांप ने काट लिया है|
देश-विदेश के वैद्द-हकीमों ने आकर रानी का इलाज किया, मगर उनकी औषधि से कोई लाभ न हुआ| कोई भी रानी की बेहोशी दूर न कर सका|
अंत में राजा ने शहर भर ढिंढोरा पिटवाया कि जो कोई रानी को अच्छा कर देगा उसे इनाम दिया जायेगा| ढिंढोरचियों ने गली-कूचे, बाजार-हाट और गांव-गांव में जाकर ढिंढोरा पिटा| सैकड़ो लोग महल में आये| उन्होंने तरह-तरह के उपचार किये, पर रानी की बेहोशी दूर न हुई|
उधर जेल की कोठरी में ब्राह्मण ने भी राजा की घोषणा सुनी| उसने पहरेदारों से कहा, “मुझे राजा के पास ले चलो| मै रानी की बेहोशी दूर कर सकता हूं|”
पहरेदार ब्राह्मण को राजा के सामने लाये| राजा ब्राह्मण को रानी के पास ले गया| उस समय रानी अपनी शय्या पर अचेत पड़ी थी| सांप के जहर से उसका सारा बदन नीला पड़ गया था|
ब्राह्मण धीरे से रानी के पास गया और अपना हाथ रानी के माथे पर फेरने लगा| ब्राह्मण के छूते ही रानी उठ बैठी| उसके शरीर का नीलापन लुप्त हो गया और चेहरा फिर पहले की तरह सुन्दर हो गया| रानी के स्वस्थ होने की खबर सुनकर देश भर में खुशी मनाई जाने लगी| राजा की खुशी का ठिकाना न रहा|
राजा ने ब्राह्मण से पूछा, “तुम कौन हो? तुम्हें जेल में क्यों रखा गया है?”
ब्राह्मण ने दुखी स्वर में उत्तर दिया, “महाराज, मुझे एक ऐसे अपराध के लिए जेल में बंद कर दिया गया है जो कि मैंने किया ही नहीं है|”
राजा ने चकित होकर पूछा, “वह क्या है?”
इस पर ब्राह्मण ने राजा को घर से लेकर जेल में बंद होने तक की सारी कथा सुना डाली| सब कुछ जान लेने पर राजा को सुनार पर बड़ा गुस्सा आया| उसने सिपाहियों को आदेश दिया कि उस अकृतज्ञ आदमी को फौरन पकड़ा जाये और उसे उसकी करनी की सजा दी जाये| राजा को भोले-भाले ब्राह्मण को बिना बात सजा देने पर बहुत दुख हुआ| उसने ब्राह्मण को एक हजार सोने की मुहरें और एक अच्छा-सा मकान पुरस्कार में दिया|
ब्राह्मण ने अपनी पत्नी और बच्चों को भी वहां बुला लिया और सब लोग सुख से रहने लगे|