आदत से लाचार

आदत से लाचार

एक राजा के भवन का शयनकक्ष अत्यंत सुंदर था| राजा के प्रतिदिन के इस्तेमाल में आनेवाले वस्त्रों में एक जूं रहती थी| वह राजा का रक्त चूसकर आनंद से जीवन व्यतीत कर रही थी|

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एक दिन कही से घूमता-फिरता एक खटमल राजा के शयनकक्ष में घुस आया| उसे देखकर जूं ने क्रोधित स्वर में कहा, ‘यहाँ मेरा अधिकार है| इसलिए तुम तुरंत यहाँ स चले जाओ|’

‘घर में आए अतिथि से ऐसा व्यवहार ठीक नही| मैं तो यहाँ एक विशेष प्रयोजन से आया हूँ|’

‘कैसा प्रयोजन?’

‘मैंने अनेक मनुष्यों का रक्त चूसा है, परंतु वे सभी रक्त लोगों के भिन्न खान-पान के कारण खट्टे, कड़वे, तीखे और कसैले ही थे| मीठे रक्त को चूसने की मेरी कामना अभी तक अधूरी ही है| यहाँ का राजा उत्तम पदार्थों का सेवन करता है, उसका रक्त अवश्य ही मधुर स्वादवाला होगा| मीठा रक्त पीकर मैं चला जाऊँगा|’ खटमल बोला|

‘ठीक है| लेकिन राजा के निद्रामग्न होने तक धैर्य धारण कर सकते हो तो मैं तुम्हें यहाँ रहने की अनुमति दे सकती हूँ|

‘मुझ पर विश्वास रखो| जब तक तुम राजा का खून नही चूस लोगी, तब तक मैं धैर्य रखूँगा|’ खटमल ने उसे विश्वास दिलाया|

‘ठीक है, दो-चार दिन तुम यहाँ रह सकते हो|’

रात्रि में जब राजा अपने शयनकक्ष में आकर लेटा तो खटमल अपनी जिह्वा पर काबू नही रख पाया पर जागते राजा को ही काटने और उसका रक्त चूसने लगा| सुई की जैसी चुभन पैदा करने वाले खटमल के डंक से बेचैन होकर राजा चिल्लाकर उठ खड़ा हुआ| बाहर खड़े सेवक राजा की आवाज़ सुनकर तुरंत शयनकक्ष में आ पहुँचे और बिछौने तथा ओढ़ने के कपड़ों की बारीकी के साथ छानबीन करने लगे| अवसर पाकर खटमल तो भाग खड़ा हुआ, मगर कपड़ों के जोड़ में छिपकर बैठी जूं पर नौकरों की नज़र पड़ गई और उन्होंने तुरंत उस जूं को मार डाला|


कथा-सार

किसी भी प्राणी का स्वभाव बदल पाना बहुत मुश्किल काम है| बिच्छू को आप लाख प्रेम करिए, लेकिन वह डंक मारना नही छोड़ेगा, क्योंकि ऐसा करना उसका स्वभाव है| यही खटमल ने भी किया| अतः किसी को भी शरण देने से पहले आगा-पीछा अवश्य विचार लेना चाहिए|

इंसाफ (ब