आदत आसानी से नही छूटती
किसी नगर में एक धोबी रहता था| कपड़े धोने में उसका कोई सानी नही था| लेकिन वह अपने गधे के साथ बहुत दुर्व्यवहार करता था| दिनभर उससे हाड़-तोड़ काम कराने के बाद भी खाने को कुछ नही देता| बेचारा गधा यहाँ-वहाँ मुहँ मारकर जो मिलता उसी से अपना पेट भर लेता| यही कारण था कि वह बहुत कमज़ोर हो गया था|
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एक दिन जब धोबी जंगल से गुजर रहा था तो उसने एक मरा हुआ शेर देखा| मृत शेर को देखकर उसके मस्तिष्क में तुरंत एक विचार कौंधा, ‘यदि इस शेर की खाल उतारकर गधे को ओढ़ा दी जाए तो कैसा रहेगा? लोग गधे को शेर समझकर डर जाएँगे और उसके खाने-पीने की समस्या स्वतः ही हल हो जाएगी| खा-पीकर गधा हष्ट-पुष्ट हो जाएगा और वह उससे अधिक काम ले सकेगा| धोबी ने वैसा ही किया- शेर कि खाल उतार ली और घर लौट आया|
अगले दिन काम खत्म करने के बाद उसने गधे को शेर की खाल ओढ़ा दी और चरने के लिए छोड़ दिया| शेर की खाल में छिपा गधा जब लोगों ने देखा तो वे भयभीत होकर अपने घरों में जा छिपे| उस रात गधे ने जी भरकर मनचाहा भोजन किया और पूर्णतया तृप्त होकर सुबह घर लौटा|
अब तो यह नित्य का नियम ही बन गया था| दिनभर गधा धोबी का काम करता और रात शेर की खाल ओढ़कर दूसरों के खेत चर जाता| कुछ ही दिनों में गधा हष्ट-पुष्ट हो गया| गधा भी खुश था और धोबी भी|
कहावत प्रसिद्ध है कि ‘असलियत छिपाए नही छिपती|’ ऐसा ही कुछ गधे के साथ भी हुआ| एक रात जब शेर की खाल ओढ़कर गधा लोगों के खेत चर रहा था तो उसके कानों में किसी अन्य गधे के रेंकने की आवाज़ पड़ी| गधों का स्वभाव होता है कि एक के रेंकना शुरू करते ही अन्य गधे भी अपना राग अलापना शुरू कर देते है| शेर की खाल ओढे गधे साथ भी ऐसा ही हुआ| जैसे ही उसके कानों में ‘ढेंचू…ढेंचू’ की आवाज़ पड़ी वह भी उसी के साथ सुर मिला बैठा|
नतीजा वही हुआ जो होना हा| जो लोग शेर समझकर उससे डरते थे उसकी असलियत जान गए और डंडे लेकर उस पर पिल पड़े| एक साथ इतनी मार गधा सह नही पाया और कुछ ही देर में ढेर हो गया|
कथा-सार
असलियत छिपाना आसान नही है| कोई भी रहस्य सदैव रहस्य की परतों में छिपा नही रह सकता| संस्कारों का बड़ा ही प्रबल प्रभाव होता है| गधे ने भले ही शेर की खाल ओढ़ ली, लेकिन था तो वह गधा ही, और यह रहस्य खुलते ही उसे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा|