आदर्श माँ
एक गाँव की सच्ची घटना है| वहाँ एक मुसलमान के घर बालक हुआ, पर बालक की माँ मर गयी| वह बेचारा बड़ा दुखी हुआ| एक तो स्त्री के मरने का दुःख और दूसरा नन्हे-से बालक का पालन कैसे करूँ-इसका दुःख! पास में ही एक अहीर रहता था|
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उसका भी दो-चार दिन का ही बालक था| उसकी स्त्री को पता लगा तो उसने अपने पति से कहा कि उस बालक को ले आओ, मैं पालन करूँगी|
अहीर उस मुसलमान के बालक को ले आया| अहीर की स्त्री ने दोनों बालकों का पालन किया| उनको अपना दूध पिलाती, स्नेह से रखती, प्यार करती| उसके मन में द्वैधीभाव नहीं था कि यह मेरा बालक है और यह दूसरे का बालक है| जब वह बालक बड़ा हो गया, कुछ पढ़ने लायक हो गया, तो उसने उस मुसलमान को बुलाकर कहा कि अब तुम अपने बच्चे को ले जाओ और पढ़ाओ-लिखाओ, जैसी मर्जी आये, वैसा करो| वह उस बालक को ले गया और उसको पढ़ाया लिखाया| पढ़-लिख कर वह एक अस्पातल में कम्पाउण्डर बन गया| उधर संयोगवश अहीर की स्त्री की छाती कुछ कमजोर हो गयी और उसके भीतर घाव हो गया| इलाज करवाने के लिये वे डाक्टर के पास पहुँचे| डाक्टर ने बीमारी देखकर कहा इसको खून चढ़ाया जाय तो यह ठीक हो जायगी| खून कौन दे? परीक्षा की गयी| मुसलमान का वह लड़का, जो कम्पाउण्डर बना हुआ था, उसी अस्पताल में था| दैवयोग से उसका खून मिल गया उसी माईने तो उसको पहचाना नहीं, पर उस लड़के ने उसको पहचान लिया कि यही मेरा पालन करने वाली माँ है| बचपन में उसका दूध पीकर पला था, इस कारण खून में एकता आ गयी थी| डाक्टर ने कहा, इसका खून चढ़ाया जा सकता है| उससे पूछा गया कि क्या तुम खून दे सकते हो? उसने कहा कि खून तो मैं दे दूँगा, पर दो सौ रूपये लूँगा| अहीर उसको दो सौ रूपये दे दिये| उसने आवश्यकतानुसार अपना खून दे दिया| वह खून उस माई को चढ़ा दिया गया, जिससे उसका शरीर ठीक हो गया और वह अपने घर चली गयी|
कुछ दिनों के बाद वह लड़का अहीर के घर गया और हजार-दो हजार माँ के चरणों में भेंट करके बोला कि आप मेरी माँ हैं| मैं आपका ही बच्चा हूँ| आपने ही मेरा पालन किया है| ये रूपये आप ले लें| उसने लेने से मना किया तो कहा कि ये आपको लेने ही पड़ेंगे| उसने अस्पातल की बात याद दिलायी कि खून के दो सौ रूपये मैंने इसलिये लिये थे कि मुफ्त में आपका बचाव नहीं होता| यह खून तो वास्तव में आपका ही है| आपके दूध से ही मैं लहसुन और प्याज भी नहीं खाता हूँ| अपवित्र, गन्दी चीजों से मेरी अरुचि हो गयी है| अतः ये रूपये आपको लेने ही पड़ेंगे| ऐसा कहकर उसने रूपये दे दिये| अहीर की स्त्री बड़े शुद्ध भाववाली थी, जिससे उसके दूध का असर ऐसा हुआ कि वह लड़का मुसलमान होते हुए भी अपवित्र चीज नहीं खाता था|
आप विचार करें| जितनी माताएँ हैं, सब अपने-अपने बच्चों का पालन करती ही हैं| हम सबका पालन बहनों-माताओं ने ही किया है| परन्तु उनकी कोई कथा नहीं सुनता, कोई बात नहीं करता| अहीर की स्त्री की बात आप और हम करते हैं| उसका हम पर असर पड़ता है कि कितनी विशेष दया थी उसके हृदय में! उसके मन में यह भेद-भाव नहीं था कि दूसरे के बच्चे का मैं कैसे पालन करूँ? इसलिये आज हम लोग उसका गुण गाते हैं कि कितनी श्रेष्ठ माँ थी, जिसने दूसरे बालक का भी पालन किया और पालन करके उसके पिता को सौंप दिया! अपने बच्चों का पालन तो कुटिया भी करती है, इसमें क्या बड़ी बात है?