आदर्श चरित्र
लंका का राजा रावण भिक्षुक के भेष में आकर सीताजी का हरण कर ले गया था| श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीताजी की खोज में जटायु के पास गए|
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वहाँ से रावण द्वारा सीताजी के हरण का समाचार पाकर पम्पासर पहुँचे| वहाँ हनुमान के माध्यम से सुग्रीव से मित्रता हुई|
सुग्रीव ने समाचार दिया कि एक दिन क्रूरकर्मा राक्षस एक नारी का हरण कर ले जा रहा था| उस समय वह ‘हे राम’ ‘हे लक्ष्मण’ पुकार रही थी| एक पर्वत-शिखर पर पाँच वानरों को बैठा देखकर उसने आकाश से अपने वस्त्र और आभूषण गिरा दिए थे| सुग्रीव ने सीताजी द्वारा गिराए हुए वस्त्र और आभूषण दिखाए| उस वस्त्र और आभूषणों को देखकर श्रीराम की आँखों में आँसू भर गए| उन्होंने अनुज लक्ष्मण से कहा- “हरण की जाती हुई सीता अपना उतरीय और आभूषण भूमि पर फेंक गई थी, तुम तनिक इन्हें पहचानो तो सही|” उन्हें देखकर लक्ष्मण ने अपने अग्रज श्रीराम को उत्तर दिया था-
नाडहं जा नामि के यूरे, ना डहं जानामि कुण्डले,|
नूपुरे खभिजानामि नित्यं पादाभिवन्दनान्||
भगवान्! न मैं कंकण (बाजूबंद) को पहचानता हूँ और न मैं कानों के कुण्डलों को ही जानता हूँ, परंतु मैं पैरों में पहने जाने वाले नूपुरों (बिछुओं) को अवश्य ही पहचानता हूँ, ये निश्चय ही सीताजी के हैं; क्योंकि मैं प्रतिदिन उनके चरणों में प्रणाम करते समय इन नूपुरों (बिछुओं) को ही देखा करता था| वाकई कितना ऊंचा चरित्र है, रामायण के लक्ष्मण का इसी प्रकार हर व्यक्ति को अपना चरित्र ऊँचा बनाना चाहिए|