कुएं की शादी (तेनालीराम) – शिक्षाप्रद कथा
तेनालीराम और राजा कृष्णदेव राय में एकबार किसी बात पर कहासुनी हो जाने पर तेनालीराम नाराज होकर कहीं चला गया| जब कई दिनों तक वह नहीं लौटा तो राजा को चिंता हुई और उन्होंने उसे खोजने का प्रयत्न किया| तेनालीराम का कहीं पता न चला| इस पर राजा को एक तरकीब सूझी| उन्होंने अपने राज्य के गांव-गांव में घोषणा करवा दी कि महाराज अपने राजकीय कुए का विवाह कर रहे हैं| सभी गांव के मुखिया को आज्ञा दी गई कि वे अपने-अपने गांव के कुओं को लेकर पहुंचे| ऐसा न करने पर दंड के रूप में बीस हजार स्वर्ण मुद्राएं देनी पड़ेंगी| जिसने सुना, वह हैरान हुआ| भला कुएं भी कहीं ले जाए जा सकते हैं| अवश्य ही महाराज के दिमाग में कुछ खराबी आ गई है| जिस गांव में जाकर तेनालीराम ठहरा था वहां भी यह घोषणा की गई| मुखिया और गांव के सभी लोग परेशान थे| तेनालीराम समझ गया कि महाराज ने यह चाल उसे खोजने के लिए चली है| उसने मुखिया से कहा, “आप बिल्कुल चिंता न करें| आपने अपने गांव में मुझे आश्रय दिया है| मैं इसका बदला अवश्य चुकाऊंगा| मैं आपको तरकीब बताऊंगा| आप चलने की तैयारी कीजिए|” तेनालीराम और गांव के चार-पांच व्यक्ति राजधानी को चल दिए| नगर के पास पहुंचकर वे रुक गये और उनमें से एक ने तेनालीराम के बताए हुए उपाय के अनुसार नगर में जाकर कहा, “महाराज हमारे गांव के लोग कुएं के विवाह में शामिल होने आ रहे हैं कि नगर के कुएं आकर उनकी अगवानी करें| उनका स्वागत करें|” राजा समझ गए कि यह तेनालीराम की ही सूझबूझ है| उन्होंने पूछा, “सचमुच बताओ, तुम्हें यह युक्ति किसने बताई है?” “महाराज कुछ दिन पहले हमारे गांव में एक परदेसी आकर ठहरा है| उसी ने यह तरकीब बताई है| वह भी अन्य लोगों के साथ नगर में बाहर आकर ठहरा है|” उस व्यक्ति ने कहा| महाराज स्वयं जाकर बड़ी धूमधाम से तेनालीराम को ले आए| उन्होंने गांव वालों को पुरस्कार देकर हंस-खुशी विदा कर दिया|