किए का फल (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा
मंत्री गरीक बादशाह को यह किस्सा सुनाकर कहने लगा, “जहांपनाह! आप मेरी बात को इतने हल्के तौर पर न लें और मेरा विश्वास करें|” अपने शब्दों पर जोर देकर वजीर पुन: बोला, “मैंने भरोसेमंद सूत्रों से मालूम किया है कि हकीम दूबां आपके किसी शत्रु का जासूस है और उसने इसे यहां पर इसलिए भेजा है कि आपको धीरे-धीरे मार दे| यह ठीक है कि आपका रोग अभी दूर हो गया है, किंतु औषधियों का बाद में ऐसा प्रभाव होगा कि आपको अत्यन्त कष्ट होगा और संभव है कि जान पर भी बन जाए यह चमत्कार तो उसने आपका विश्वास जीतने के लिए दिखाया है| असल में तो उसका मसकद कुछ और ही है जिसे आप समझ नहीं रहे हैं|”
मंत्री ने बादशाह को इस प्रकार बहकाया कि वह हकीम पर संदेह करने लगा| वह बोला, “शायद तुम ठीक ही कहते हो| हो सकता है कि यह मेरी हत्या के उद्देश्य से आया हो और किसी समय मुझे कोई ऐसी औषधि सूंघाए जिससे मेरी जान जाती रहे| मुझे वास्तव में अपने लिए खतरा महसूस होता है|”
मंत्री ने सोचा कि अपने षड्यंत्र को शीघ्र ही पूरा करना चाहिए, ऐसा न हो कि बादशाह का विचार बाद में पलट जाए| वह बोला, फिर देर किस बात की है जहांपनाह! उसे अभी बुलवाकर क्यों नहीं मरवा देते?”
बादशाह ने कहा, “अच्छा, मैं ऐसा ही करता हूं|”
बादशाह ने एक सरदार को भेजा कि इसी समय दूबां को बुला लाए|
दूबां के आने पर बादशाह ने पूछा, “तुम्हें मालूम है! मैंने तुम्हें इस समय क्यों बुलाया है?”
उसने निवेदन किया कि उसे नहीं मालूम है|
बादशाह ने कहा, “मैंने तुम्हें सजा-ए-मौत देने के लिए बुलाया है, ताकि तुम्हारे षड्यंत्र से अपना बचाव कर सकूं|”
हकीम को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने पूछा, “जहांपनाह! मेरा अपराध किया है? जो आप मुझे मरवा रहे हैं?”
बादशाह ने कहा, “तुम मेरे किसी शत्रु के जासूस हो और यहां मुझे मारने के लिए आए हो| मेरे लिए यही उचित है कि तुम्हें सजा-ए-मौत देने में एक क्षण भी जाया न करूं|” यह कहकर बादशाह ने जल्लाद को बुलाकर हुक्म दिया कि फौरन से पेश्तर हकीम का कत्ल कर दिया जाए|
हकीम समझ गया कि मेरे पशुओं ने ईर्ष्या के कारण बादशाह का मन मुझसे फेर दिया है| वह इस बात पर पछताने लगा कि मैंने क्यों आकर बादशाह को रोग मुक्त किया और अपनी जान गंवाने के लिए यहां आया| वह बहुत देर तक बादशाह के सामने अपनी निर्दोषता सिद्ध करता रहा, लेकिन बादशाह ने उसे मारने की जिद्द पकड़ ली|
उसने दूसरी बार जल्लाद को आज्ञा दी, “हकीम को मार दो|”
हकीम कहने लगा, “आप मुझे निरपराध ही मरवा रहे हैं| अल्लाह मेरी हत्या का बदला आपसे लेगा|”
इतना कहकर मछुवारे ने गागर के दैत्य से कहा कि जो बात दूबां और बादशाह गरीक के बीच थी, वही मेरे और तुम्हारे बीच है| खैर, आगे की कहानी सुनो –
जब जल्लाद दूबां को मारने के लिए उसकी आंखों पर पट्टी बांधने लगा, तो बादशाह के दरबारियों ने हकीम को निरपराध समझकर एक बार फिर बादशाह से उसकी जान न लेने की प्रार्थना की, किंतु बादशाह ने उन सबको ऐसी डांट पिलाई कि उन्हें फिर कुछ कहने की हिम्मत न रही|
हकीम को विश्वास हो गया कि अब किसी तरह मेरी जान नहीं बच सकती तो उसने बादशाह से कहा, “बादशाह सलामत! मुझे इतनी मोहलत तो दें कि मैं घर जाकर अपनी वसीयत लिख आऊं| मैं अपनी पुस्तकें किसी सुपात्र को सौंपना चाहता हूं| लेकिन उनमें से एक पुस्तक आपके अपने पुस्ताकलय में रखने योग्य है|”
बादशाह ने आश्चर्य से पूछा, “ऐसी कौन सी पुस्तक है तुम्हारे पास, जो मेरे लायक हो? क्या है उस पुस्तक में?”
दूबां ने कहा, “उसमें बड़ी अद्भुत और काम की बातें हैं| उनमें से एक बात यह है कि मेरे सिर के काटे जाने के बाद पुस्तक के छठे पन्ने के बाएं पृष्ठ की तीसरी पंक्ति को पढ़कर आप जो भी प्रश्न करेंगे, उसका उत्तर मेरा कटा हुआ सिर देगा|”
बादशाह को यह सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ| उसने सोचा-विचारकर अपने सिपाहियों को आज्ञा दी कि हकीम को पहरे में उसके घर ले जाओ| बादशाह की आज्ञा के अनुसार सिपाही हकीम को उसके घर ले गए| हकीम ने एक दिन में अपना काम-काज समेट लिया| दूसरे दिन जब उसे बादशाह के सामने ले जाया गया, तो उसके हाथों में एक मोटी-सी पुस्तक थी, जो एक चमड़े की जिल्द में लिपटी थी|
हकीम ने बादशाह से कहा, “मेरे कटे हुए सिर को एक सोने के थाल में उस पुस्तक के ऊपर लिपटे-कपड़े पर रखेंगे, तो खून बहना बंद हो जाएगा| इसके बाद मेरी बताई हुई पंक्ति पढ़कर जो भी सवाल आप पूछेंगे, मेरा कटा हुआ सिर उसका जवाब देगा| लेकिन मैं फिर आपसे निवेदन करता हूं कि मैं निरपराध हूं| आप मुझ पर दया करें और मेरे वध का आदेश वापस ले लें|”
बादशाह ने कहा, “नहीं, अब मुझे जो कुछ सुनना होगा, तेरे कटे हुए सिर से ही सुनूंगा| तेरे रोने-पीटने का कोई लाभ नहीं है|”
यह कहकर बादशाह ने पुस्तक अपने हाथ में ले ली और जल्लाद को इशारा किया| जल्लाद ने बिना एक पल गंवाए गंडासे से हकीम की गरदन काट दी|
बादशाह ने हकीम की कटी हुई गरदन को सोने के थाल में रखकर हकीम द्वारा दी गई किताब पर रखवाया तो खून बहना बंद हो गया| यह देखकर बादशाह और दरबारियों को बड़ा आश्चर्य हुआ|
अब उस कटे सिर ने आंखें खोलकर बादशाह से कहा, “पुस्तक का छठा पन्ना खोल|”
बादशाह ने ऐसा करना चाहा, लेकिन पुस्तक के पृष्ठ एक-दूसरे से चिपके हुए थे| इसलिए उसने उंगली में थूक लगाकर पन्नों को अलग करना शुरू किया| जब छठा पन्ना खुला, तो बादशाह ने देखा कि उस पृष्ठ पर कुछ नहीं लिखा है| उसने यह बात बताई तो कटे सिर ने कहा, “आगे के पृष्ठ देख| शायद उनमें लिखा हो|”
बादशाह उंगली में थूक लगा-लगाकर पृष्ठों को अलग करने लगा|
वास्तव में हकीम ने पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर विष लगा रखा था| थूक लगी उंगली बार-बार पृष्ठों पर रगड़े जाने और फिर मुंह में जाने पर उन पृष्ठों पर लगा विष बादशाह के शरीर में प्रवेश कर गया| बादशाह की हालत खराब होने लगी, किंतु उसने कटे सिर से प्रश्नों के उत्तर पाने की लालसा में इस पर कुछ ध्यान न दिया|
अंतत: उसकी दृष्टि भी मंद पड़ गई और वह राज सिंहासन से नीचे गिर गया| हकीम के सिर ने जब देखा कि विष पूरी तरह चढ़ गया और बादशाह क्षण-दो-क्षण का मेहमान है, तो वह हंसकर बोला, “अरे क्रूर अन्यायी, तुने देखा कि निर्दोष की हत्या का क्या परिणाम होता है? इन पन्नों पर जहर लगा था जो अब तुझे लील जाएगा|”
यह सुनते ही बादशाह के प्राण निकल गए| इस प्रकार उसे अपने किए का फल मिल गया|
शहरजाद ने यह कहानी सुनाकर शहरयार से कहा, “बादशाह सलामत! मछुवारे ने दैत्य को हकीम दूबां और बादशाह गरीक की जो कहानी सुनाई थी, वह तो खत्म हो गई – अब मैं मछुवारे और दैत्य की कहानी आगे बढ़ाती हूं|”