गधा और मेंढ़क – शिक्षाप्रद कथा
पुराने जमाने की बात है| किसी गांव में एक गधा रहता था| उसका मालिक उस पर बहुत अधिक बोझ लादता था और आसपास के बाजारों में ले जाकर बेचता था|
एक बार गधा अपनी पीठ पर लकड़ियों का एक भारी गट्ठर रख कर बाजार की ओर जा रहा था, जब वह एक दलदल पार कर रहा था तो अचानक मेंढकों के एक झुंड के बीच में गिर पड़ा| वह वहां पड़े-पड़े इस प्रकार हांफता और कराहता रहा जैसे शीघ्र ही मरने वाला हो| मालिक उसे दलदल से निकालने के लिए मदद करने वाले कुछ लोगों की तलाश में चला गया|
तभी एक मेंढ़क बोला – “हलो मेरे प्यारे गधे! हम बड़ी देर से तुम्हारा नाटक देख रहे हैं| तुम इस दलदल में गिरकर इतने परेशान दिखाई दे रहे हो| जरा यह तो सोचो कि अगर तुम्हें इस दलदल में रहना पड़ता जैसे हम इतने वर्षों से रहते आ रहे हैं तो तुम क्या करते| क्या हाल होता तुम्हारा?”
शिक्षा: हमें प्रत्येक स्थिति में हौसला रखना चाहिए| हमें समझना चाहिए कि संकट में साहस और सब्र से ही छुटकारा मिलता है, बेवजह चिल्लाने से हंसी उड़ती है|