भस्मासुर भस्म (भगवान शिव जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
दैत्यराज शकुनि के पुत्र का नाम वृकासुर था| वृकासुर बहुत ही महत्वकांक्षी युवक था और उसकी हर समय यही इच्छा रहती थी कि वह संसार का अधिपति बन जाए| एक दिन जब वह आखेट के लिए जा रहा था, तो मार्ग में उसे देवर्षि नारद मिल गए| वृकासुर ने उनका अभिवादन किया| नारद ने पूछा – “कैसे हो युवराज! तुम्हारे माता-पिता कुशल तो हैं न?”
वृकासुर बोला – “सब कुशल है देवर्षि! मुझे आपसे एक बात पूछनी थी, आप मुझे यह बताइए कि ब्रह्मा-विष्णु और महेश में कौन-सा देव ऐसा है जो जल्दी प्रसन्न हो जाता है|”
नारद बोले – “तुम यह क्यों पूछ रहे हो युवराज! क्या किसी देव का तप करने का इरादा है?”
वृकासुर बोला – “आप ठीक समझे देवर्षि! मैं तप करके किसी देव से अपना अभीष्ट पाना चाहता हूं| तप चाहे कितना ही कठोर क्यों न करना पड़े, इसकी मुझे चिंता नहीं|”
नारद बोले – “तो सुनो, ब्रह्मा-विष्णु और महेश में से भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जो शीघ्र ही संतुष्ठ हो जाते हैं| परंतु तुम्हें याद रखना होगा कि जहां वे अति कृपालु हैं वहीं थोड़े से अपराध पर कुद्ध भी बहुत जल्दी हो जाते हैं| इसलिए उनकी तपस्या करते समय तुम्हें यह बात विशेष तौर से याद रखनी पड़ेगी|”
यह कहकर नारद तो चले गए और वृकासुर ने अपने ढंग से तप करने का निश्चय किया| वह हिमालय पर्वत पर केदार क्षेत्र में पहुंचा और अग्नि प्रज्वलित करके अपने जिस्म से मांस के टुकड़े काट कर उन्हें पवन कुंड में डालने लगा| इस तरह छह दिन बीत गए| वह मात्र हड्डियों का ढांचा रह गया किंतु उसके तप में कोई कमी नहीं आई| सातवें दिन उसने अपनी तलवार उठाई और अपना शीश काटकर हवन-कुंड में डालना चाहा| सहसा हवन-कुंड से भगवान शिव, पार्वती सहित प्रकट हुए| उन्होंने वृकासुर का खड़ग वाला हाथ थमाकर कहा – “मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं पुत्र! वर मांगो|”
शिव के स्पर्श मात्र से ही वृकासुर की सारी कमजोरी और थकान तत्काल समाप्त हो गई| उसमें पहले से कहीं ज्यादा बल पैदा हो गया, साथ ही उसका सारा शरीर एकदम स्वस्थ हो गया| वृकासुर ने शिव-पार्वती को प्रणाम किया| वह सोचने लगा कि शिव से क्या वर मांगना चाहिए| यद्यपि वह पहले निश्चय कर चुका था कि भगवान शिव से अमर होने और सारे संसार का शासक होने का वर मांगेगा| किंतु माता पार्वती के रूप को देखकर उसने अपना पहला निश्चय बदल दिया|
फिर उसने सोचा – ‘क्यों न मैं शिव से ऐसा वर मांग लूं कि मैं जिसके सिर पर हाथ रख दूं, वही तत्क्षण भस्म हो जाए| इससे शिव का कांटा भी हमेशा के लिए दूर हो जाएगा और यह सुंदरी भी मुझे मिल जाएगी|’ यह सोचकर उसने कहा – “भगवान! मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि मैं जिस किसी के भी सिर पर हाथ रख दूं, वह तत्काल भस्म हो जाए|”
भगवान शिव ने ‘एवमस्तु’ कहा और पार्वती के साथ चलने को हुए| वृकासुर इसी अवसर की प्रतीक्षा में था| जैसे ही शिव ने ‘एवमस्तु’ कहा वह तत्काल शिव की ओर झपटा| शिव हड़बड़ाए और उससे बचने के लिए भाग निकले| भगवान शिव की समझ में नहीं आ रहा था कि असुर से कैसे पीछा छुड़ाया जाए| अचानक उनके दिमाग में एक विचार कौंधा – ‘भगवान विष्णु के पास चलना चाहिए| वही इस संकट से मेरी रक्षा कर सकेंगे|’ यह सोचकर वे वृकासुर को धोखा देकर एक गुफा मार्ग से विष्णु के पास जा पहुंचे और हांफते हुए बोले – “मुझे बचाइए प्रभो! मुझसे ही वरदान पाकर एक असुर मुझे भस्म कर देना चाहता है|”
विष्णु बोले – “धैर्य रखिए भूतेश्वर! मैं अभी किसी उपाय से उस असुर का विनाश करता हूं|”
यह कहकर भगवन विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और उस मार्ग पर जा पहुंचे, जहां से वह असुर शिव को खोजता हुआ आगे बढ़ रहा था| एक अपूर्व सुंदरी को यूं अचानक अपने सामने खड़े देखकर वृकासुर अचकचा गया| वह एकटक उसे देखकर सोचने लगा – ‘वाह क्या सुंदर स्त्री है| यह तो वास्तव में मेरी पत्नी बनने योग्य है|’
वह यह सोच ही रहा था कि मोहिनी ने मुस्कराते हुए कहा – “यहां इस सुनसान में क्या करते फिर रहे हो दैत्यराज! ऐसा क्या हो गया कि आपको एक साधारण मनुष्य की भांति आतुर ढंग से दौड़ लगानी पड़ रही है|”
वृकासुर बोला – “मैं शिव का पीछा कर रहा हूं सुंदरी! वह मुझे धोखा देकर यहीं कहीं छुप गया है| मैं उसको भस्म करना चाहता हूं ताकि उसकी सुंदर पत्नी को पा सकूं| उसी ने मुझे ऐसा वरदान दिया है कि मैं जिसके भी सिर पर हाथ रखूंगा वही भस्म हो जाएगा|”
मोहिनी बोली – “क्या शिव की पत्नी बहुत सुंदर है?”
वकासुर बोला – “हां, वह वास्तव में ही सुंदर है परंतु तुमसे कुछ कम ही सुंदर है| तुम वास्तव में अतीव सुंदर हो| लेकिन अब मैं तुम्हें पाना चाहता हूं|”
मोहिनी बोली – “यद्यपि में किसी से विवाह करना नहीं चाहती परंतु तुम्हारी बात कुछ और है| तुम स्वयं भी कम सुंदर नहीं हो दैत्यनंदन! मैं स्वयं भी तुम्हारी बनना चाहती हूं| परंतु मेरी एक शर्त है कि जो कोई भी नृत्य में मेरे समान ही प्रवीण होगा, मैं उसी से विवाह करूंगी|”
यह सुनकर वृकासुर सोच में पड़ गया| नाचना तो उसे आता नहीं था| मोहिनी उसकी असमंजसता को भांपकर बोली – “किस सोच में पड़ गए दैत्यनंदन! कहीं यह तो नहीं सोच रहे कि नाचना तो मुझे आता ही नहीं|”
वृकासुर झेंपते हुए बोला – “सच कहा तुमने सुंदरी! मैं यही सोच रहा था|”
“इसमें सोचने जैसे क्या बात है| नाचना तो मैं तुम्हें अभी कुछ ही देर में सिखा सकती हूं|” मोहिनी बोली|
वृकासुर शिव को भस्म करने और पार्वती को प्राप्त करने की सारी बातें भूल गया| उस पल उसे सिर्फ यही ध्यान रहा कि जैसे भी हो, इस सुंदरी को हासिल करना है| वह प्रकटत: बोला – “मैंने कभी नृत्य नहीं किया है सुंदरी! अगर तुम मेरी सहायता करोगी तो शायद मैं तुम्हारा साथ दे सकूं|”
मोहिनी बोली – “बड़ी सीधी और सरल बात है| मैं मुद्राएं बताती चलती हूं, तुम उन मुद्राओं को दोहराते चलो|”
उसके बाद मोहिनी ने वृकासुर को नृत्य की विभिन्न मुद्राएं समझानी आरंभ कर दीं| अंत में वह अपने सिर पर हाथ रखकर, एक पैर ऊंचा उठाए और दूसरा हाथ होठों पर रखकर बड़ी आकर्षक मुद्रा में खड़ी हो गई| वृकासुर ने उसकी मुद्राएं दोहराईं| पहले उसने एक पांव ऊंचा उठाया| एक हाथ होंठों पर रखा और दायां हाथ सिर पर रख दिया| अचानक बिजली सी कौंधी और देखते ही देखते वृकासुर ‘धू-धू’ करके जलने लगा| देखते ही देखते वृकासुर का शरीर जलकर भस्म हो गया| भगवान शिव का वरदान सार्थक हो गया|
मोहिनी वेशधारी विष्णु ने तुरंत असली रूप धारण कर लिया और मुस्कुराते हुए शिव से बोले – “वृकासुर समाप्त हो गया देव! वह दुष्ट अपने ही हाथ से अपनी मृत्यु को प्राप्त हुआ|”
भगवान शिव ने संतोष की सांस ली| फिर बोले – “लेकिन यह संभव कैसे हुआ भगवन! उसे तो मैं वरदान ही ऐसा दिया था कि वह जिस भी किसी के सिर पर हाथ रख देगा वही भस्म हो जाएगा|”
भगवान विष्णु ने मुस्कराते हुए अपने मोहिनी रूप धारण करने का सारा वृतांत कह सुनाया| जिसे सुनकर शिव के साथ-साथ लक्ष्मी जी भी दिल खोलकर हंसीं| इस प्रकार एक आततायी दानव का विनाश हुआ|
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