बेगम की बेवफाई (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा
मछुवारा यह कहानी सुनाकर दैत्य से कहने लगा, “यदि गरीक बादशाह हकीम दूबां की हत्या न करता, तो भगवान उसे ऐसा दंड न देता| अरे दैत्य! तेरा हाल भी उस बादशाह की तरह है| तू अगर बंधन से छुटकर मुझे मारने की इच्छा न करता तो दोबारा बंधन में न पड़ता| अब मैं तुझ पर दया करके तुझे फिर से स्वतंत्र करूं? मैं तो गागर समेत तुझे फिर नदी में डाल रहा हूं, जहां तू अनंत काल तक पड़ा रहेगा|”
दैत्य बोला, “मेरे मित्र, तू ऐसा न कर| मैं अब तुझे मारने का इरादा कभी न करूंगा| बुराई के बदले में भी भलाई करनी चाहिए| तू भी मेरे साथ ऐसी ही भलाई कर जैसी इम्मा ने अतीका के साथ की थी|”
मछुआरे ने कहा, “मुझे वह कहानी नहीं मालूम|”
जिन बोला, “यदि तू यह कहानी सुनना चाहे, तो मुझे बंधन मुक्त कर क्योंकि सुराही में अच्छी तरह नहीं बोल पाऊंगा| मुझे मुक्त करे तो यही नहीं और भी बहुत अच्छी कथाएं सुनाऊंगा|”
जिन के बार-बार गिड़गिड़ाने से द्रवित होकर ज्योंही मछुआरे ने सुराही का ढक्कन खोला, उसमें से धुआं निकला और नदी पर फैल गया| कुछ देर में उसने जिन का रूप धारण कर लिया| जिन ने ठोकर मारकर सुराही को नदी में डुबा दिया|
मछुआरा यह देखकर बहुत डरा और बोला , “हे जिन, यह तुने क्या किया? क्या तू अपने वचन पर स्थिर नहीं रहना चाहता?”
मछुआरे के भयभीत होने पर जिन हंसकर बोला, “तू डर मत| अपना जाल उठा और मेरे पीछे-पीछे आ|” वे दोनों वहां से चल पड़े और एक वन के अंदर से गुजरकर एक पहाड़ की चोटी पर चढ़ गए| फिर वहां से उतरकर एक लम्बे-चौड़े महल में गए| उस महल में एक तालाब दिखाई दिया, जिसके चारों और टीले थे|
तालाब के पास पहुंचकर जिन ने मछुआरे से कहा, “तू इस तालाब में जाल डाल और मछलियां पकड़|”
मछुआरा खुश हो गया, क्योंकि तालाब में बहुत-सी मछलियां थीं| उसने जाल डालकर खींचा, तो उसमें चार मछलियां फंसी हुई नजर आईं, जो चार रंग की थीं – सफेद, लाल, पीली और काली|
जिन ने कहा, “तू इन मछलियों को लेकर यहां के बादशाह के पास चला जा| वह तुझे इतना धन देगा, जो तुने कभी देखा भी नहीं होगा| किंतु एक बात का ध्यान रखना| तालाब में एक दिन में एक ही बार जाल डालना|”
यह कहकर जिन ने जमीन में जोर की ठोकर मारी| जमीन फट गई और जिन उसमें समा गया| जिन के उस गड्ढे में समाने के बाद जमीन फिर समतल हो गई, जैसे उसमें कभी गड्ढा हुआ ही न हो|
मछुआरा चारों मछलियां पकड़कर बादशाह के महल में ले गया|
कहानी सुनाते हुए शहरजाद थोड़ी देर के लिए रुकी, फिर उसने शहरयार से कहा, “महाराज! उस बादशाह को उन मछलियों को देखकर जितनी प्रसन्नता हुई, उसका वर्णन करना मेरी शक्ति से बाहर है|
उसने अपने वजीर से कहा, “जाओ, यूनान के राजा ने जिस बावर्चिन को हमें भेंट स्वरूप दिया था, इन मछलियों को उस बावर्चिन के पास ले जाओ| सिर्फ वही ऐसी होशियार है जो इन सुंदर मछलियों को भली-भांति पका सकती है|”
मंत्री मछलियों को बावर्चिन के पास ले गया|
बादशाह ने मछुआरे को चार सौ मोहरें इनाम में दे डालीं|
बावर्चिन ने मछलियों के टुकड़े करके उन्हें धो-धोकर तलने के लिए गरम तेल में डाल दिया| जब टुकड़े एक ओर से लाल सुर्ख हो गए तो उसने उन्हें पलटा| उस समय उसने जो कुछ देखा, उसे देखकर उसकी आंखें फट गईं| उसने देखा कि एकाएक रसोईघर की दीवार फट गई और उसमें से एक अति सुंदर स्त्री बड़े ठाट-बाट से भड़कीले कपड़े पहने बाहर निकली| उसके शरीर पर मिस्त्र देश की रानियों जैसे बेशकीमती आभूषण थे| उसके वस्त्र भी राजसी और मूल्यवान थे|
स्त्री बाहर आकर अपने हाथ में पकड़ी मूल्यवान छड़ी उठाकर उस कड़ाही के पास आ खड़ी हुई जिसमें मछलियां भुन रही थीं| उसने एक मछली पर छड़ी मारी और बोली, “ओ मछली, ओ मछली, क्या तू अपनी प्रतिज्ञा पर कायम है?”
मछली में कोई हरकत न हुई| स्त्री ने फिर छड़ी मारी और अपना प्रश्न दोहराया|
इस पर चारों मछलियों में हरकत हुई और वे बोलीं, “यह सच्ची बात है तुम हमें मानोगी, तो हम तुम्हें मानेंगे और अगर तुम हमारा ऋण वापस करोगी, जो हम तुम्हारा ऋण वापस कर देंगे|”
यह सुनते ही स्त्री ने कड़ाही को, जिसमें मछलियां पड़ी थीं, जमीन पर उलट दिया और स्वयं दीवार में समा गई| दीवार पहले की तरह सामान्य हो गई|
बावर्चिन इस घटना को देखकर मूर्च्छित हो गई| कुछ देर बाद वह होश में आई, तो देखा कि मछलियां चूल्हे के अदंर गिरकर कोयला हो चुकी हैं| वह अत्यन्त दुखी होकर रोने लगी|
वह सोच रही थी, ‘मैंने तो यह सारा दृश्य अपनी आंखों से देखा है, लेकिन इस पर बादशाह को कैसे विश्वास आएगा|’ वह इसी चिंता में बैठी थी कि तभी मंत्री ने आकर पूछा, “मछलियां पक चुकीं या नहीं?”
बावर्चिन ने मंत्री को सारा वाकया बताया|
मंत्री को इस कहानी पर विश्वास तो नहीं हुआ, लेकिन उसने बावर्चिन की शिकायत करना ठीक न समझा| उसने बादशाह से मछलियों के खराब होने का कोई बहाना बना दिया और मछुआरे को बुलाकर आदेश दे दिया, “जाओ, वैसी ही चार मछलियां और ले आओ|”
मछुआरे ने जिन से किया हुआ वादा तो उसे न बताया, लेकिन कोई और मजबूरी बता दी कि अब मछलियां क्यों नहीं आ सकतीं|
दूसरे दिन मछुआरा फिर उस तालाब पर गया और तालाब में जाल डाला| फलस्वरूप उसी प्रकार की चार रंगों वाली मछलियां आज फिर उसके जाल में फंसीं|
मछलियां लेकर वह मंत्री के पास पहुंचा|
मंत्री ने उसे इनाम दिया और बावर्चिन के पास मछलियां लाकर कहा, “इन्हें मेरे सामने पकाओ|”
बावर्चिन ने पहले दिन की तरह मछलियां काट और धोकर गरम तेल में डालीं और जब उन्हें कड़ाही में तलने लगी तो आज फिर अचानक दीवार फट गई और वही स्त्री हाथ में छड़ी लेकर निकली और छड़ी से एक मछली को छूकर पहले दिन जैसी हरकत की| तब उन चारों मछलियों ने जुड़कर, सिर उठाकर और पूंछ पर खड़े होकर वही उत्तर दिया| स्त्री ने आज फिर कड़ाही उलट दी और दीवार में समा गई| दीवार फिर जुड़कर पहले जैसी हो गई|
मंत्री इन सब बातों को देखकर अचंभित हो गया|
जब दरबार में जाकर उसने यह बात बादशाह को बताई तो उसे भी घोर आश्चर्य हुआ| वह बोला, “मैं स्वयं अपनी आंखों से यह सब देखना चाहता हूं|”
वजीर ने फिर मछुआरे को हुक्म दिया, “ऐसी ही चार मछलियां और ले आओ|”
मछुआरा बोला, “सरकार! अब मैं तीन दिन से पहले मछलियां लाने में असमर्थ हूं|”
चूंकि सारा दृश्य अद्भुत था, इसलिए बादशाह ने मछुआरे पर कुछ जोर नहीं डाला| तीन दिन बाद उसने फिर वैसी ही चार मछलियां लाकर बादशाह को दे दीं| बादशाह ने खुश होकर उसे चार सौ अशर्फियां इनाम में दीं|
बादशाह ने मंत्री से कहा, “बावर्चिन को हटा दो और तुम खुद मेरे सामने इन मछलियों को पकाओ|”
मंत्री ने बावर्चीखाना अंदर से बंद करके मछलियां पकाना शुरू किया| जब एक ओर से लाल होने पर मछलियों को पलटा गया, तो एक बार फिर दीवार फट गई| किंतु इस बार उसमें से वह सुंदरी नहीं निकली, बल्कि गुलामों जैसे कपड़े पहने, हाथ में एक छड़ी लिए एक हब्शी निकला| हब्शी ने बड़े कठोर और भयावह स्वर में पूछा, “मछलियों, मछलियों, क्या तुम अपने वचन पर अब भी स्थिर हो?”
मछलियां अपने सिरों को उठाकर बोलीं, “हम उसी बात पर स्थिर हैं|”
हब्शी ने कड़ाही उलट दी और स्वयं दीवार के रिक्त स्थान में घुस गया| दीवार देखते ही देखते पहले की तरह जुड़ गई|
बादशाह ने मंत्री से कहा, “यह अद्भुत घटना मैंने स्वयं देखी है वरना मैं इस पर विश्वास न करता| ये मछलियां भी साधारण नहीं हैं| मैं इस रहस्य को जानने के लिए बड़ा उत्सुक हूं|”
यह कहकर उसने मछुआरे को फिर बुलवाया और उससे पूछा, “तू ये रंगीन मछलियां कहां से लाया था?”
मछुआरे ने बताया, “मैंने उन्हें उस तालाब से पकड़ा है, जिसके चारों ओर टीले हैं|”
बादशाह ने मंत्री से पूछा, “तुम्हें मालूम है कि वह तालाब कहां है?”
मंत्री ने कहा, “हुजूर, मैं साठ वर्ष से उस ओर शिकार खेलने जाता हूं, लेकिन मैंने तो आज तक ऐसा तालाब न देखा है और न ही सुना|”
अब बादशाह ने मछुआरे से पूछा, “तालाब कितनी दूर है और क्या तू मुझे वहां ले जा सकता है?”
मछुआरे ने कहा, “वह तालाब यहां से तीन घड़ी के रास्ते पर है और मैं आपको जरूर वहां ले जाऊंगा|”
उस समय दिन छिपने में थोड़ा ही समय रह गया था, किंतु बादशाह को ऐसी उत्सुकता थी कि उसने अपने दरबारियों और रक्षकों को शीघ्र ही तैयार होने की आज्ञा दी, फिर वह मछुवारे के पीछे-पीछे हो लिया और उसके बताए हुए पहाड़ पर चढ़ गया| जब पहाड़ के दूसरे ओर उतरा, तो वहां बड़ा विशाल वन दिखाई दिया| यह वन पहले किसी ने नहीं देखता था| फिर बादशाह और उसके साथियों ने वह वन भी पार किया और सब लोग उस तालाब के किनारे पहुंच गए, जिसके चारों ओर टीले थे| उस तालाब का पानी अत्यन्त निर्मल था और जिन चार रंगों की मछलियां उस मछुआरे से मिलती थीं, वैसी अनगिनत मछलियां उस तालाब में तैर रही थीं| उसने अपने दरबारियों और सरदारों से पूछा, “क्या तुम लोगों ने पहले भी इस तालाब को देखा है?” उन सबने बताया जहांपनाह, देखना तो दूर हमने तो कभी इस तालाब के विषय में सुना तक नहीं|”
बादशाह सोच में पड़ गया और अंत में बोला, “जब तक मैं इस तालाब और उसकी रंगीन मछलियों का रहस्य अच्छी तरह समझ नहीं लूंगा, यहां से नहीं जाऊंगा| तुम सब लोग भी यहां डेरा डाल लो|”
उसकी आज्ञानुसार दरबारियों और रक्षकों के डेरे तालाब के चारों पड़ गए|
रात होने पर उसने मंत्री को अपने डेरे पर बुलाया और कहा, “मैं इस भेद को जानने के लिए अति उत्सुक हूं कि उस बावर्चीखाने में हब्शी कैसे आया और उसने मछलियों से कैसे बात की? और मैं यह भी जानना चाहता हूं कि यह तालाब, जिसे किसी ने नहीं देखा था, अचानक कहां से आ गया? मैं अपने कौतूहल को दबा नहीं पा रहा हूं, अत: मैंने सोचा है कि मैं अकेले ही इस रहस्य का परदाफाश करूं|” मैं अकेला जा रहा हूं| तुम यहीं रहो| प्रात:काल जब दरबारी यहां पर आएं, तो उनसे कह देना कि बादशाह कुछ बीमार हो गए हैं और कुछ दिन यहीं पर शांतिपूर्वक रहना चाहते हैं| यह कहकर सारे दरबारियों और रक्षकों को राजधानी वापस भेज देना और तुम इस डेरे में अकेले ही उस समय तक प्रतीक्षा करना, जब तक कि मैं लौट न आऊं|”
बादशाह की बात सुनकर मंत्री सकते में आ गया| यह क्या पागलपन था| उसने बादशाह को बहुत समझाया, “जहांपनाह! आप यह न करें| इस काम में बड़ा खतरा है| यह भी संभव है कि इतना सब करने के बाद भी आपको कोई रहस्य ज्ञात न हो पाए, फिर बेकार में क्यों इतना कष्ट उठा रहे हैं और इतना खतरा मोल ले रहे हैं?”
मगर बादशाह पर उसके समझाने-बुझाने का कोई असर नहीं हुआ| उसने बादशाही पोशाक उतारी और एक साधारण सैनिक के वस्त्र पहन लिए| जब सब लोग गहरी नींद में सोए हुए थे, वह तलवार लेकर अपने खेमे से निकला और एक ओर चलता हुआ एक पहाड़ पर चढ़ गया|
कुछ ही देर में वह उसकी चोटी पर पहुंचकर दूसरी ओर उतर गया| आगे उसे एक गहन वन दिखाई दिया| वह उसी के अंदर दाखिल हो गया| कुछ दूर जाने पर सवेरा हो गया| कुछ और दूर जाने पर उसे एक सुंदर महल दिखाई दिया| महल देखकर वह बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे आशा बंधी कि उसे इस जगह से तालाब के रहस्य का कुछ पता चलेगा|
महल के निकट पहुंचकर उसने देखा कि वह बहुत विशाल है और काले पत्थरों का बना है| उसकी दीवारों पर साफ किए हुए इस्पाती पत्थर जड़े थे, जो दर्पण की भांति चमकते थे| बादशाह को विश्वास हो गया कि यहां उसे मनोवांछित सूचना अवश्य मिलेगी|
वह बहुत देर तक दूर खड़ा महल की शोभा निहारता रहा, फिर उसके पास चला गया| उसने देखा कि महल का द्वार खुला है, फिर भी शिष्टता के नाते उसने ताली बजाई कि उसकी आवाज सुनकर शायद कोई अंदर से बाहर आए| जब कोई नहीं आया, तो यह सोचकर उसने सांकल को खड़खड़ाया कि शायद उसकी ताली की आवाज अंदर तक नहीं पहुंची होगी|
सांकल खड़खड़ाने पर भी जब कोई नहीं निकला, तो बादशाह को क्रोध आ गया कि कैसे अशिष्ट लोग यहां रहते हैं जो बुलाने पर भी आकर नहीं पूछते| वह अंदर गया और ड्योढ़ी में पहुंचकर जोर से बोला, “क्या अंदर कोई है, जो एक अतिथि को रहने के लिए थोड़ा सा स्थान दे दे?”
इस बार भी उसे कोई उत्तर न मिला, तो उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा| ड्योढ़ी से आगे बढ़कर वह महल में घुसा, तो देखा कि अंदर से वह महल और भी लम्बा-चौड़ा है, किंतु उसके अंदर कोई है नहीं| इसके अलावा उस विशाल महल में तीन बाग थे, जिनमें बड़ी सुघड़ता के साथ भांति-भांति के सुगंधित फूलों और उत्तम फलों के पेड़ लगे थे| बागों में हर चीज ऐसी तरतीब से लगी थी कि उन्हें देखकर दुखी मनुष्य भी आनंद से भर जाए| वृक्षों पर नाना प्रकार के सुंदर पक्षी कलरव कर रहे थे| वह पक्षी उन्हीं वृक्षों पर रहते थे, उड़कर नहीं जा सकते थे क्योंकि वृक्षों के ऊपर जाल पड़े हुए थे| बादशाह एक कमरे से दूसरे कमरे और एक बाग से दूसरे बाग में घूम-घूमकर हर वस्तु को देखकर आनंदित होता रहा| घूमते-घूमते जब वह थक गया तो एक कक्ष में बैठकर आराम करने लगा और सामने वाले बाग की शोभा देखने लगा|
इतने मसे उसे एक कातर कराह सुनाई दी, जैसे कोई बड़े दुख से कराह रहा हो| उसने सांस रोककर उस स्वर को सुना तो मालूम हुआ कि कोई मनुष्य रो-रोकर अपनी करुण व्यथा का बखान करते हुए अपने दुर्भाग्य को कोस रहा है| बादशाह उठकर उस कक्ष तक गया जिसमें से यह आवाज आ रही थी, फिर परदा उठाकर उसने देखा कि एक नवयुवक सिंहासन जैसे किसी ऊंचे तख्त पर राजसी वस्त्र पहने बैठा है और करुण स्वर में विलाप कर रहा है|
बादशाह ने उसके निकट जाकर इसका कारण पूछा, तो युवक बोला, “मुझे क्षमा कीजिए, मैं उठकर आपका स्वागत करने में असमर्थ हूं|”
बादशाह ने कहा, “मैं आपके शीलवान व्यवहार से बड़ा प्रभावित हुआ हूं| वास्तव में ऐसा कोई कारण होगा कि आप उठ न सके| किंतु आपके दुख को देखकर मुझे भी बेहद दुख हुआ है| आप मुझे बताइए कि मैं आपका कष्ट किस प्रकार दूर कर सकता हूं? तालाब का रहस्य क्या है और उसकी मछलियां कौन हैं?”
यह सुनकर वह युवक फिर रोने लगा और बोला, “मेरा हाल सुनने के पहले यह देख लीजिए|”
यह कहकर उसने अपना कपड़ा उठाया, तो बादशाह ने देखा कि वह नाभि से ऊपर तो जीवित मनुष्य है और नीचे काले पत्थर का बना हुआ है|
यह देखकर राजा की आंखें फटी-की-फटी रह गईं और वह बोला, “मुझे तो यहां की प्रत्येक वस्तु देखकर आश्चर्य और उत्सुकता बहुत बढ़ गई है| अल्लाह के वास्ते तफसील से अपना हाल बताइए| मुझे विश्वास हो रहा है कि तालाब की रंग-बिरंगी मछलियों के रहस्य का भी आपसे ही संबंध है| आप मुझे अपनी दास्तान सुनाइए| कहते हैं कि दूसरे को अपना दुख सुनाने से आदमी का कुछ दुख तो दूर होता ही है|”
युवक ने कहा, “मुझे अपनी देशा के वर्णन से भी बड़ा कष्ट होता है किंतु आपका आग्रह है, इसलिए कहता हूं|”
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