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बड़ों की बात मानो – शिक्षाप्रद कथा

बड़ों की बात मानो - शिक्षाप्रद कथा

एक बड़ा भारी जंगल था, पहाड़ था और उसमें पानी के शीतल निर्मल झरने थे| जंगल में बहुत-से पशु रहते थे| पवर्त की गुफा में एक शेर, एक शेरनी और शेरनी के दो छोटे बच्चे रहते थे| शेर और शेरनी अपने बच्चों को बहुत प्यार करते थे|

जब शेर के बच्चे अपने माँ-बाप के साथ जंगल में निकलते थे, तब उन्हें देखकर जंगल के दूसरे पशु भाग जाया करते थे| लेकिन शेर-शेरनी अपने बच्चों को बहुत कम अपने साथ ले जाते थे| वे बच्चों को गुफा में छोड़कर वन में अपने भोजन की खोज में चले जाया करते थे|

शेर और शेरनी अपने बच्चों को बार-बार समझाते थे कि वे अकेले गुफा से बाहर भूलकर भी न निकलें| लेकिन बड़े बच्चे को यह बात अच्छी नहीं लगती थी| एक दिन जब बच्चों के माँ-बाप जंगल में गये थे, बड़े बच्चे ने छोटे से कहा – ‘चलो झरने से पानी पी आवें और वनमें थोड़ा घूमें| हरिनों को डरा देना मुझे बहुत अच्छा लगता है|’

छोटे बच्चे ने कहा – ‘पिताजी ने कहा है कि अकेले गुफा से मत निकलना| झरने के पास जाने को तो उन्होंने बहुत मन किया है| तुम ठहरो| पिताजी या माता जी को आने दो| हम उनके साथ जाकर पानी पी लेंगे|’

बड़े बच्चे ने कहा – ‘मुझे प्यास लगी है| सब पशु तो हम लोगों से डरते ही हैं| डरने की क्या बात है?’

छोटा बच्चा अकेला जाने को तैयार नहीं हुआ| उसने कहा – ‘मैं तो माँ-बाप की बात मानूँगा| मुझे अकेला जाने में डर लगता है|’ बड़े भाई ने कहा – ‘तुम डरपोक हो, मत जाओ, मैं तो जाता हूँ|’ बड़ा बच्चा गुफा से निकला और झरने के पास गया| उसने भर पेट पानी पिया और तब हरिनों को ढूँढ़ने इधर-उधर घूमने लगा|

उस जंगल में उस दिन कुछ शिकारी आये थे| शिकारियों ने दूरसे शेर के अकेले बच्चे को घूमते देखा तो सोचा कि इसे पकड़कर किसी चिड़िया खाने को बेच देने से रुपये मिलेंगे| छिपे-छिपे शिकारी लोगों ने शेर के बच्चे को चारों ओर से घेर लिया और एक साथ उस पर टूट पड़े| उन लोगों ने कम्बल और कपड़े डालकर उस बच्चे को पकड़ लिया|

बेचारा शेर का बच्चा क्या करता| वह अभी कुत्ते-जितना बड़ा भी नहीं हुआ था| उसे कम्बल में खूब लपेटकर उन लोगों ने रस्सियों से बाँध दिया था| वह न तो छटपटा सकता था, न गुर्रा सकता था|

शिकारियों ने इस बच्चे को एक चिड़िया खाने को बेच दिया| वहाँ वह एक लोहे के कटघरे में बंद कर दिया गया| वह बहुत दु:खी था| उसे अपने माँ-बाप की बड़ी याद आती थी| बार-बार वह गुर्राता और लोहे की छड़ों को नोचता था, लेकिन उसके नोचने से छड़ टूट तो सकती नहीं थी|

जब भी वह शेर का बच्चा किसी छोटे बालक को देखता था, बहुत गुर्राता और उछलता था| यदि कोई उसकी भाषा समझता तो वह उससे अवश्य कहता – ‘तुम अपने माँ-बाप तथा बड़ों की बात अवश्य मानना| बड़ों की बात न मानने से पीछे पश्चात्ताप करना पड़ता है| मैं बड़ों की बात न मानने से ही यहाँ बंदी हुआ हूँ|’

सच है –

जे सठ निज अभिमान बस सुनहिं न गुरुजन बैन|
ते जग महँ नित लहहिं दुख कबहुं न पावहिं चैन||

 

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