असंतोषी सदा दुखी – शिक्षाप्रद कथा
एक बार एक गधा और बंदर किसी वृक्ष की छांव में बैठे हुए थे| वे आपस में विभिन्न विषयों पर बात कर रहे थे| वे आपस में विभिन्न विषयों पर बात कर रहे थे| अचानक बातचीत का रुख व्यक्तिगत शारीरिक संरचना ने ले लिया| विषय उठा कि दूसरे जानवर किस प्रकार उनके अनाकर्षक शरीर को देखकर हंसते हैं|
गधे ने कहा – “देखो मित्र, ईश्वर ने मेरे साथ क्या किया है| कितने लम्बे कान बनाए हैं मेरे| अगर उसने मुझे छोटे-छोटे सुंदर कान और दो सींग दिए होते तो मेरे शरीर का अनुपात ठीक रहता| इस समय तो स्थिति यह है कि लोग हमारी बिरादरी को बड़ी ही हीन दृष्टि से देखते हैं| हमारी बुद्धि को भी घटिया समझते हैं| कोई उल्टा-सीधा काम करे तो उसे गधा कहते हैं| यदि भगवान हमें अच्छी किस्म की बुद्धि ही दे देते तो कम से कम हमारी कुछ तो कद्र होती|”
गधे की बात सुनकर बंदर बोला – “हां मित्र, मैं तुम्हारी बातों से सहमत हूं| अब मेरी पूंछ ही देखो| मेरा शरीर एक लोमड़ी के शरीर से बड़ा है, जबकि मेरी दुम उसकी दुम से पतली है| काश मेरी भी झाड़ीदार दुम होती, तब मेरा शरीर भी सुंदर दिखाई देता!”
उसी वृक्ष के पास ही एक छछूंदर भी रहती थी| वह बहुत देर से उनकी बातें सुन रही थी| जब उससे उनकी बातें सहन न हुईं तो वह अपने बिल से बाहर आकर बोली – “मित्रो! यदि बुरा न मानो तो मैं कुछ कहूं|”
गधे और बंदर ने उसकी ओर देखा, फिर आपस में सलाह हुई और गधे ने कहा – “कहो मित्र छछूंदर! क्या कहना चाहते हो?”
“देखो मित्र, इच्छाओं का कोई अंत नहीं है| ईश्वर के प्रति अकृतज्ञ नहीं होना चाहिए| हर व्यक्ति को जो कुछ ईश्वर ने दिया है, उससे संतुष्ट होना चाहिए| उदाहरणार्थ, मुझे देखो – न तो मेरे सींग हैं और न ही सुंदर पूंछ| मुझे तो साफ-साफ दिखाई भी नहीं पड़ता| परंतु मैं संतुष्ट हूं| इसलिए चिंता मत करो| जीवन का आनंद लो और प्रसन्न रहो|”
शिक्षा: तुम्हारे पास जो कुछ है, उसी में संतुष्ट रहो| कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके पास कुछ भी नहीं है|