Homeअतिथि पोस्टअपने युग के अवतार की शिक्षाओं को ‘जानना’ ही प्रभु को जानना है’ तथा उन शिक्षाओं पर ‘चलना’ ही ‘प्रभु भक्ति’ है! – डा. जगदीश गांधी

अपने युग के अवतार की शिक्षाओं को ‘जानना’ ही प्रभु को जानना है’ तथा उन शिक्षाओं पर ‘चलना’ ही ‘प्रभु भक्ति’ है! – डा. जगदीश गांधी

अपने युग के अवतार की शिक्षाओं को ‘जानना’ ही प्रभु को जानना है’ तथा उन शिक्षाओं पर ‘चलना’ ही ‘प्रभु भक्ति’ है! - डा. जगदीश गांधी

(1)     यह शरीर और उसके सारे अंग हमें प्रभु का कार्य करने के लिए मिले हैं:-

संसार के प्रत्येक बालक को उसके माता-पिता तथा शिक्षकों द्वारा सबसे पहले यह बताया जाना चाहिए कि मैं कौन हूँ? मेरा शरीर मैं नही हूँ, शरीर मेरा मित्र है। यह शरीर और उसके सारे अंग हमें प्रभु का कार्य करने के लिए मिले हैं। मेरा मन मैं नहीं हूँ, मन मेरा औजार है। मनुष्य की असली पहचान यह है कि वह एक अजर, अमर और अविनाशी आत्मा है। मृत्यु शरीर की होती है, आत्मा अनन्त काल तक प्रभु मिलन के लिए दिव्य लोक में यात्रा करती है। इसलिए माता-पिता तथा शिक्षकों द्वारा अपने बालक को बार-बार यह बताना चाहिए कि मैं शरीर नहीं हूँ, मैं आत्मा हूँ।

 

(2)     हमारा असली घर यह संसार नहीं वरन् दिव्य लोक है:-

हमारा असली घर या वतन प्रभु का दिव्य लोक है। संसार के जीवन में हम जिस स्तर तक अपनी चेतना या आत्मा को विकसित कर लेते हैं उसी स्तर का स्थान हमें दिव्य लोक में मिलता है। मनुष्य का संसार का जीवन छोटा सा लगभग 100 वर्षों का होता है लेकिन देह के अन्त के बाद आत्मा का जीवन अनन्त काल का होता है। संसार के छोटे से जीवन को सांसारिक सुख-सुविधाओं तथा ऐशो-आराम से भरने की भौतिक इच्छा की पूर्ति के लिए अपनी आत्मा के अनन्त काल के जीवन को कभी भी दांव पर लगाने की भूल नहीं करनी चाहिए।

 

(3)     संसार का जीवन देह के अन्त के बाद के जीवन की तैयारी के लिए मिला है:-

संसार के प्रत्येक मनुष्य के जीवन को दो भागों में बांटा जा सकता है – पहले भाग में संसार का जीवन तथा दूसरे भाग में देह के अन्त के पश्चात का अनन्त काल का आत्मा का जीवन आता है। वास्तविकता यह है कि अनेक लोगों को यह ही नहीं मालूम है कि उनके पहले भाग का जीवन दूसरे भाग की परिपूर्णता के लिए मिला है। अतः संसार में रहकर हमें मुख्य रूप से उन्हीं चीजों को अपने जीवन में विकसित करना चाहिए जिसकी हमें देह के अन्त के पश्चात आत्मा की अनन्त काल के जीवन यात्रा में आवश्यकता होगी।

 

(4)     सभी अवतार परमात्मा के प्रतिनिधि होते हैंः-

परमपिता परमात्मा की ओर से धरती पर युग-युग में अवतरित हुए अवतार परमात्मा के प्रतिनिधि होते हैं। परमात्मा की दिव्य योजना के अन्तर्गत धरती पर व्यक्ति तथा सारे समाज का कल्याण करने के लिए अवतारों को परमात्मा भेजता है। ये अवतार युग-युग में ऐसे स्थान पर जन्म लेते है, जहां सबसे अधिक समस्या होती है। वे अपने-अपने युग की सबसे बड़ी समस्या का समाधान अपनी शिक्षाओं के माध्यम से व्यक्ति तथा मानव जाति को देते हैं। कालान्तर में उनकी शिक्षायें विभिन्न भाषाओं में अनुवादित होकर सारे संसार में प्रचारित हो जाती हैं।

 

(5)     अपने युग के अवतार की शिक्षाओं को जाननाही प्रभु को जानना हैः

प्रभु ने हमें केवल दो कार्यों (पहला) परमात्मा को जानने और (दूसरा) उसकी पूजा करने के लिए ही इस पृथ्वी पर मनुष्य रूप में उत्पन्न किया है। पहला परमात्मा को जानने का मतलब है परमात्मा द्वारा युग-युग में पवित्र धर्म ग्रंथों – गीता की न्याय, त्रिपटक की समता, बाईबिल की करूणा, कुरान की भाईचारा, गुरू ग्रन्थ साहेब की त्याग व इस युग के अवतार बहाउल्लाह के माध्यम से आई किताबे अकदस की हृदय की एकता आदि की मूल शिक्षाओं को जानना है।

 

(6)     युग अवतार की शिक्षाओं पर चलनाही प्रभु भक्तिहैः-

दूसरा परमात्मा की पूजा करने का मतलब है कि परमात्मा की युग-युग में जो शिक्षायें अवतारों के माध्यम से धरती पर प्रकटित हुई हैं, उन पर जीवन-पर्यन्त दृढ़तापूर्वक चलते हुए अपनी नौकरी या व्यवसाय करके अपनी आत्मा का सर्वोत्तम विकास करना है। इसलिए हमें संसार के प्रत्येक बालक को बाल्यावस्था से ही मर्यादा, न्याय, समता, करूणा, भाईचारा, त्याग, हृदय की एकता की मूल शिक्षाओं को आत्मसात कराना चाहिए।  

 

(7)     मर्यादापुरूषोत्तम श्रीराम ने हंसते-हंसते अपने सारे सुख त्याग दिये:-

मानव सभ्यता के ज्ञात इतिहास के अनुसार आज से 7500 वर्ष पूर्व के युगावतार राम का जन्म अयोध्या में हुआ। राम ने बचपन में ही प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया। राम ने शरीर के पिता राजा दशरथ के वचन को निभाने के लिए हँसते हुए राज्याभिषेक के ठीक पूर्व पिता दशरथ के वचन को निभाने के लिए 14 वर्षों के लिए वन जाने का निर्णय सहर्ष स्वीकार किया। राम अपनी पत्नी सीता तथा भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षो तक वनवास के कठोर कष्टों को हंसते हुए सहन करते हुए रावण को मारकर धरती पर मर्यादा की स्थापना करके मर्यादा मर्यादापुरूषोत्त श्रीराम बन गये।

 

(8)     योगेश्वर कृष्ण ने सीख दी कि न्यायार्थ अपने प्रिय बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है:-

5000 वर्ष पूर्व के युगावतार कृष्ण का जन्म मथुरा की जेल में हुआ। कृष्ण ने बचपन में ही ईश्वर की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया और उनमें अपार ईश्वरीय ज्ञान व ईश्वरीय शक्ति आ गई और उन्होंने बाल्यावस्था में ही कंस का अंत किया। इसके साथ ही उन्होंने कौरवों के अन्याय को खत्म करके धरती पर न्याय की स्थापना के लिए महाभारत के युद्ध की रचना की।

 

(9)     भगवान बुद्ध ने कहा कि जाति प्रथा मानव निर्मित है यह ईश्वरीय आज्ञा नहीं है:-

2500 वर्ष पूर्व के युगावतार बुद्ध ने मानव जाति को सामाजिक कुरीतियों-अन्याय से मुक्ति दिलाने तथा ईश्वरीय प्रकाश का मार्ग ढूंढ़ने के लिए राजसी भोगविलास त्याग दिया और अनेक प्रकार के शारीरिक कष्ट झेले। बचपन में ही उन्होंने राज दरबार में इस बात को साबित किया कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। बुद्ध ने बताया कि जाति प्रथा मानव निर्मित है यह ईश्वरीय आज्ञा नहीं है। समता ईश्वरीय आज्ञा है।

 

(10) प्रभु ईशु को कांटों का ताज पहनाकर तथा बड़ी-बड़ी कीलें ठोककर सूली पर टांग दिया गया:-

लगभग 2000 वर्ष पूर्व के युगावतार ईशु मानव जाति को प्रेम तथा करूणा की सीख देने के लिए धरती पर आये। ईशु सबको प्रेम की सीख जा-जाकर देते थे। ईशु को जब सूली दी जा रही थी, तब वे परमपिता परमात्मा से प्रार्थना कर रहे थे – हे परमात्मा! इन्हें माफ कर दो जो मुझे सूली दे रहे हैं। प्रभु की ओर से आवाज आयी ईशु तू इनके लिए प्रार्थना कर रहा है जो तुझे सूली दे रहे हैं। ईशु ने कहा कि प्रभु आपकी ही सीख है कि ऐसे लोग अबोध एवं अज्ञानी हैं, अपराधी नहीं जिनके माता-पिता तथा शिक्षकों ने उन्हें बचपन से ही परमात्मा तथा आत्मा का बोध नहीं कराया है। परमात्मा ने कहा कि ईशु तू ठीक कहता है। दयालु परमात्मा ने सभी अज्ञानियों को माफ कर दिया। जिन लोगों ने ईशु को सूली पर चढ़ाया देखते ही देखते उनके कठोर हृदय पिघल गये। इस तरह ईशु ने धरती पर करूणा का सागर बहा दिया।

 

(11) मोहम्मद साहब ने मानव जाति को भाईचारे की सीख दी:-

1400 वर्ष पूर्व के युगावतार मोहम्मद साहब का अवतरण ऐसे समय हुआ, जब भाई-भाई के खून का प्यासा हो गया था। बड़े कबीलें के लोग छोटे कबीलें की बहिन-बेटियों तथा उनके जानवरों को उठाकर ले जाते थे। वे अनेक प्रकार से उन्हें सताते थे। मोहम्मद साहब ने इस अन्याय का खुलकर विरोध किया। मोहम्मद साहब को दुष्टों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा और वे 13 वर्षों तक मक्का में मौत के साये में जिऐ। जब वे 13 वर्ष के बाद एक दिन रात के अन्धेरे में छिपकर मदीने चले गये तब भी उन्हें मारने के लिए कातिलों ने मदीने तक उनका पीछा किया। पवित्र कुरान की पहली सीख है कि खुदा रब्बुल आलमीन है अर्थात इस सारे संसार के सभी इंसान एक खुदा के बंदे हैं। धरती के किसी भी इंसान से नफरत करना, किसी का दिल दुखाना तथा सताना अल्ला की शिक्षाओं के खिलाफ है।

 

(12)     नानक ने मानव जाति को सेवा और त्याग की सीख दी:-

500 वर्ष पूर्व के युगावतार नानक को ईश्वर एक है तथा ईश्वर की दृष्टि में सारे मनुष्य एक समान हैं, के दिव्य प्रेम से ओतप्रोत सन्देश देने के कारण उन्हें रूढ़िवादिता से ग्रस्त कई बादशाहों, पण्डितों और मुल्लाओं का कड़ा विरोध सहना पड़ा। नानक ने प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचान लिया था उन्होंने जगह-जगह घूमकर तत्कालीन अंधविश्वासों, पाखण्डों आदि का जमकर विरोध किया। नानक की शिक्षायें सेवा तथा त्याग पर आधारित हैं। उन्होंने मानव जाति को सेवा तथा त्याग की सीख दी। नानक ने कहा कि जब तेरे हृृदय में सभी की भलाई का विचार होगा तब वह तेरे चिन्तन को परमात्मा की ओर ले जायेगा।

 

(13) बहाउल्लाह ने मानव जाति को हृदय की एकता की सीख दी है:-  

200 वर्ष पूर्व आज के युगावतार बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह को प्रभु का कार्य करने के कारण 40 वर्षों तक जेल में असहनीय कष्ट सहने पड़ें। जेल में ही बहाउल्लाह की आत्मा में प्रभु का प्रकाश आया। बहाउल्लाह की सीख है कि परिवार में दादा-दादी, माता-पिता, पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहिन सभी परिवारजनों के हृदय मिलकर एक हो जाये तो परिवार में स्वर्ग उतर आयेगा। इसी प्रकार सारे संसार में सभी के हृदय एक हो जाँये तो सारा संसार स्वर्ग समान बन जायेगा।

 

(14) जब सभी अवतारों का परमात्मा एक है तो हमारे अनेक कैसे हो सकते हैं?

हमें संसार के प्रत्येक बालक को बाल्यावस्था से यह बताया जाना चाहिए कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। इसके लिए हमें प्रत्येक बालक को बचपन से ही एक ही परमात्मा की ओर से युग अवतारों के माध्यम से दी गईं सभी शिक्षाओं का ज्ञान देने के साथ ही उन्हें इन शिक्षाओं पर चलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। हमें उन्हें बचपन से ही यह सीख देनी चाहिए कि अपने युग के अवतार की शिक्षाओं को जाननाही प्रभु को जानना हैतथा उन शिक्षाओं पर चलनाही प्रभु भक्तिहै।   

डा. जगदीश गांधी

डा. जगदीश गांधी

– डा. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं
संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

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