एकादशी माहात्म्य – एकादशी व्रत विधि-विधान
एकादशी को प्रातःकाल पवित्रता के लिये स्नान करें| फिर संकल्प विधि के अनुसार कार्य करें| दोपहर को संकल्पानुसार स्नान करने से पहले बदन पर मिट्टी का लेप करें और मन्त्र का यह भावार्थ पढ़ें –
भावार्थ – “हे वसुन्धरे! तुम्हारे ऊपर अश्व और रथ चला करते हैं| भगवान् विष्णु ने भी वामन अवतार धारण कर तुम्हें अपने पैरों से नापा था| मृत्तिके! मैंने पूर्वकाल में जो भी पाप किये हैं, मेरे उन सभी पापों को दूर करने की कृपा करें|”
शास्त्रों के अनुसार दशमी की शाम से द्वादशी को दोपहर तक निराहार रहने और एकादशी की रात्रि को जागरण करने पर ही सभी एकादशियों के व्रत का पूरा फल मिलता है| जो एकादशी को निराहार रहते हैं, परन्तु रात्रि भर जागरण नहीं करते, उनको व्रत का आधा फल प्राप्त होता है| जो व्यक्ति एकादशी को एक समय फलाहार करते हैं परन्तु रात्रि जागरण नहीं करते, उनको मात्र एक-चौथाई फल मिलता है, जबकि एकादशी के दिन अन्न खाना पाप माना जाता है|
व्रत रखने वाले स्त्री-पुरुष को स्नान करने के बाद धूप, दीप, नैवेद्य से भगवान् की पूजा करके रात्रि को दीपदान करना चाहिए| यह सब कार्य क्रोध, लोभ, मोह का परित्याग करके सत्कर्म भाव से करें| इस दिन रात्रि को स्त्री से सहवास न करें| मिथ्याभाषी, चोर, पाखंडी, परस्त्रीगामी को यह व्रत नहीं करना चाहिए|
भक्तियुक्त होकर रात्रि में जागरण करें, अपनी-अपनी शक्ति और श्रद्धा के अनुसार ब्राह्मणों को दक्षिणा दें और प्रणाम करके उनसे त्रुटियों के लिये क्षमा माँगें| जिस प्रकार कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करते हैं, ठीक वैसा ही शुक्ल पक्ष की एकादशी का भी व्रत करना चाहिये|