Homeएकादशी माहात्म्यएकादशी माहात्म्य – एकादशी व्रत-उपवास एवं महत्त्व

एकादशी माहात्म्य – एकादशी व्रत-उपवास एवं महत्त्व

एकादशी माहात्म्य

भगवान् विष्णु की कृपा और पुण्य संचय करने के लिये ही व्रती एकादशी का व्रत करते हैं| व्रत और उपवास में अन्तर होता है| किसी भी व्रत में प्रचलित परम्परा के अनुसार सागार-फलाहार आदि लिये जा सकते हैं, परन्तु उपवास अधिकतर निराहार किया जाता है|
त्रिस्पर्शा और पक्षवर्धिनी एकादशी अधिक महत्वपूर्ण एवं फलदायी मानी जाती हैं| इसी प्रकार यदि दशमी तिथि को दिन में या रात में एकादशी हो, तो द्वादशीयुक्त एकादशी का व्रत करना उत्तम होता है| भगवान् महादेव ने पक्षवर्धिनी एकादशी का महत्त्व श्री नारदजी को सुनाया था| यदि अमावस्या अथवा पूर्णिमा आठ दण्ड की रहे और दिन – रात अविकल में रूप रहे तथा दूसरे दिन प्रतिपदा में कुछ अंश चला जाए, तो उस पक्ष की एकादशी पक्षवर्धिनी मानी जाती है| इस एकादशी का व्रत अधिक पुण्यदायी और फलदायी माना गया है| जो भक्त, श्रद्धालु स्त्री-पुरुष पक्षवर्धिनी एकादशी का माहात्म्य सुनते या पढ़ते हैं, वे उस पुण्य के भागी होते हैं| इस पक्षवर्धिनी एकादशी के समान ही त्रिस्पर्शा एकादशी के व्रत का वर्णन किया गया है| यदि किसी एक तिथि के दिन एकादशी हो और साथ में द्वादशी तिथि भी हो तथा रात्रि के अन्तिम प्रहर में त्रयोदशी तीथी आ जाए, तो ऐसी एकादशी त्रिस्पर्शा एकादशी कहलाती है| इसका व्रत करने से अनन्त पुण्य फल की प्राप्ति होती है|

शास्त्रकारों ने व्रत का स्तर स्थापित किया है| अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार जो सम्भव हो, करना चाहिये –

(1) निर्जल-व्रत, (2) उपवास-व्रत, (3) केवल एक बार अन्नरहित दुग्धादि पेय पदार्थ ग्रहण करना, (4) नक्त-व्रत (दिन भर उपवास रखकर रात्रि में फलाहार करना), (5) एकभुक्त-व्रत (किसी भी समय एक बार फलाहार करना)| अशक्त, वृद्ध बालक और रोगी को भी जो व्रत न कर सकें, यथासम्भव अन्न-आहार का परित्याग तो एकादशी के दिन करना ही चाहिये|

वर्तमान समय में सांसारिक मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति भोग-विलास और आनन्दपूर्ण जीवन की ओर अधिक रहती है| अतः इस मनोवृत्ति को सीमित करते हुए सत्कर्म में ईश्वर-आराधना में नियमित संलग्न रहना भी व्रत-पर्वों का ध्येय है| अपनी लगन, परिश्रम और ईमानदारी से दैनिक कार्यों को धर्म और कर्त्तव्यपरायणता से करते रहना चाहिए| मन, वचन और कर्म से मन में भगवान् को साक्षी मानकर अच्छे कार्य करना ही एकादशी के धार्मिक व्रतों के उद्देश्य में अन्तर्निहित है| इसी से सामजिक मान-सम्मान, प्रसिद्धि, यश और सम्पन्नता में वृद्धि होती है|