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एकादशी माहात्म्य – पारण

एकादशी माहात्म्य

द्वादशी के दिन ब्राह्मण को पहले भोजन कराना चाहिये| यदि ऐसा करने में असमर्थ हों, तो ब्राह्मण भोजन के निमित कच्चा सामान (सीधा) मन्दिर में या सुपात्र ब्राह्मण को थाली सजाकर देना चाहिए| हरिवासर में भी पारण करना निषेध है| एकादशी के व्रत करने वाले मनुष्य यदि सब नियमों का पालन कर सकें, तो वह व्रत उन्हें पूर्ण फलदायी सिद्ध होगा|

हेमन्त-ऋतु में मार्गशीर्ष मास आने पर, कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को इसका उपवास (व्रत) रखना चाहिये| उसकी विधि इस प्रकार है – शुद्ध मन से स्त्री-पुरुष दशमी को सदा एकभुक्त रहे अर्थात् दिन में एक बार ही भोजन करें| दिन में आठवें भाग में जब सूर्य का तेज मन्द पड़ जाता है, उसे ‘नक्त’ जानना चाहिये| रात को भोजन करना ‘नक्त’ नहीं है| सभी विवाहित स्त्री-पुरुषों को तारे दिखाई देने पर नक्त भोजन करने का विधान है और संन्यासियों के लिये दिन के आठवें भाग अर्थात् रात में भोजन का निषेध माना गया है|