भागवतवक्ता गोकर्ण – श्रीमद्भगवद्गीता
प्राचीन कलमें तुग्ङभद्रा नदीके तटपर स्थित एक ग्राममें आत्मदेव नामक एक विद्वान् और धनवान् ब्राह्मण रहता था| उसकी स्त्रीका नाम धुन्धुली था|
ब्राह्मण दम्पति संतानहीन थे| एक दिन वह ब्राह्मण संतानचिन्तामें निमग्र होकर घरसे निकल पड़ा और वनमें जाकर एक तालाबके किनारे बैठ गया| वहाँ उसे एक संन्यासी महात्माके दर्शन हुए| ब्राह्मणने उनसे अपनी संतानहीनताका दुःख बताकर संतान प्राप्तिका उपाय पूछा| महात्माने कहा – ‘ब्राह्मणदेव! संतानसे कोई सुखी नहीं होता है| तुम्हारे प्रारब्धमें संततियोग नहीं है| तुम्हें भगवान् के भजनमें मन लगाना चाहिये|’ ब्राह्मण बोला – ‘महाराज! मुझे आपका ज्ञान नहीं चाहिये| मुझे संतान दीजिये, अन्यथा मैं अभी आपके सामने अपने प्राणोंका त्याग कर दूँगा|’ ब्राह्मणका हठ देखकर महात्माजीने उसे एक फल दिया और कहा – ‘तुम इसे अपनी पत्नीको खिला दो| इसके प्रभावसे तुम्हें पुत्रप्राप्ति होगी|’ आत्मदेवने वह फल ले जाकर अपनी पत्नीको दे दिया, किंतु उसकी पत्नी दुष्टस्वभावकी कलहकारिणी स्त्री थी| उसने गर्भधारण एवं प्रसवकष्टका स्मरण करके फलको अपनी गायको खिला दिया और पहलेसे गर्भवती अपनी छोटी बहनसे प्रसवके बाद संतानको अपने लिये देनेका वचन ले लिया| समय आनेपर धुन्धुलीकी बहनको एक पुत्र हुआ और उसने अपने पुत्रको धुन्धुलीको दे दिया| उस पुत्रका नाम धुन्धुकारी रखा गया|
तीन मासके बाद गायको भी एक पुत्र उत्पन्न हुआ| उसके शरीरके सभी अग्ङ मनुष्यके थे, केवल कान गायके जैसा था| ब्राह्मणने उस बालकका नाम गोकर्ण रखा| गोकर्ण थोड़े ही समयमें परम विद्वान् और ज्ञानी हो गये| धुन्धुकारी दुश्वरित्र, चोर और वेश्यागामी निकला| आत्मदेव उससे दुःखी होकर और गोकर्णसे उपदेश प्राप्त करके वनमें चले गये और वहीं भगवान् का भजन करते हुए परलोक सिधारे| गोकर्ण भी तीर्थयात्राके लिये चले गये| धुन्धुकारीने अपने पिताकी सम्पत्ति नष्ट कर दी| उसकी माताने कुएँमें गिरकर अपना प्राण त्याग दिया| उसके बाद धुन्धुकरीने निरंकुश होकर पाँच वेश्याओंको अपने घरमें रख लिया| एक दिन वेश्याओंने उसे भी मार डाला| धुन्धुकारी अपने दूषित आचरणके कारण प्रेतयोनिको प्राप्त हुआ|
गोकर्ण तीर्थयात्रा करके लौट आये| वे जब रातमें घरमें सोने गये, तब प्रेत बना हुआ धुन्धुकारी उनके संनिकट आया| उसने बड़े ही दीन शब्दोंमें अपना सम्पूर्ण वृत्तान्त गोकर्णसे कह सुनाया और प्रेतयोनिकी भीषण यातनासे छुटनेका उपाय पूछा| भगवान् सूर्यकी सलाहपर गोकर्णने धुन्धुकारीको प्रेतयोनिसे मुक्त करनेके लिये श्रीमभ्दागवतकी सप्ताह-कथा प्रारम्भ की| श्रीमभ्दागवतकथाका समाचार सुनकर आस-पासके गाँवोंके लोग भी कथा सुननेके लिये एकत्र हो गये| जब व्यासके आसनपर बैठकर गोकर्णने कथा कहनी प्रारम्भ की, तब धुन्धुकारी भी प्रेतरूपमें सात गाँठोंके एक बाँसके छिद्रमें बैठकर कथा सुनने लगा| सात दिनोंकी कथामें क्रमश: उस बाँसकी सातों गाठें फट गयीं और धुन्धुकारी प्रेतयोनिसे मुक्त होकर भगवान् के धामको चला गया| श्रावणके महीनेमें गोकर्णने एक बार फिर उसी प्रकार श्रीमभ्दागवतकी कथा कही और उसके प्रभावसे कथा-समाप्तिके दिन वे अपने श्रेताओंके सहित भगवान् विष्णुके परमधामको पधारे|