प्रद्युम्न – श्रीमद्भगवद्गीता

प्रद्युम्न

प्रद्युम्नजी कामदेवके अवतार माने जाते हैं| ये भगवान् श्रीकृष्णकी प्रमुख पत्नी रुक्मिणीजीके पुत्र थे| इनका जीवन-चरित्र अत्यन्त विचित्र है|

कामदेवको जब भगवान् शंकरने भस्म कर दिया, तब उसकी पत्नी रति भगवान् शिवके पास जाकर करुण विलाप करने लगी| आशुतोष भगवान् शिवने उसपर दया करके उसे वरदान दिया कि द्वापरमें जब सच्चिदानन्द भगवान् श्रीकृष्णका अवतार होगा, तब तुम्हारा पति उनके पुत्रके रूपमें उत्पन्न होगा|

पतिसे मिलनेकी आशामें रति भगवान् श्रीकृष्णके अवतारकी उत्कण्ठाके साथ प्रतीक्षा करने लगी| उसी समय शम्बरासुर नामका एक बलवान् दैत्य हुआ| उसने रतिको अपने घरमें रख लिया| वह शम्बरासुरके अधीन रहकर अत्यन्त दु:खी रहती थी| कालान्तरमें रुक्मिणीजीके गर्भसे प्रद्युम्नजीका जन्म हुआ| शम्बरासुरको यह ज्ञात था कि रुक्मिणीके गर्भसे उत्पन्न होनेवाले भगवान् श्रीकृष्णके प्रथम पुत्रके हाथों उसकी मृत्यु होगी| इसीलिये जन्मके छठीके दिन उसने अपनी मायासे प्रद्युम्नका अपहरण कर लिया और उसे मृतक समझकर लवणसागरमें डाल दिया| प्रद्युम्नको एक मत्स्यने निगल लिया| मछुओंने जाल डालकर उस मत्स्यको पकड़ लिया और उसे शम्बरासुरको भेंट कर दिया| शम्बरासुरने  उसे पकानेके लिये अपने रसोइयोंको दिया| रसोइयोंने जब मत्स्यका पेट चीरा तो उससे एक अत्यन्त सुन्दर जीवित बालक निकला| उन रसोइयोंकी स्वामिनी रति थी, जिसका नाम उस समय मायावती था| वह पाककलामें अत्यन्त निपुण थी| रसोइयोंने बालकको लाकर मायावतीको दिया| मायावती उस अद्वितीय बालकको देखकर मुग्ध हो गयी| उसी समय देवर्षि नारदने आकर मायावतीको प्रद्युम्नके जन्मके रहस्यसे परिचित कराया और सावधानीपूर्वक उनका पालन करनेका निर्देश दिया| मायावती यत्नपूर्वक प्रद्युम्नका लालन-पालन करने लगी|

थोड़े ही दिनोंमें प्रद्युम्नजी युवा हो गये| मायावतीके व्यवहारमें मातृत्वके स्थानपर पत्नीत्वका भाव था| प्रद्युम्नके कारण पूछनेपर उसने बताया कि आप मेरे जन्म-जन्मान्तरके पति हैं| इस दुष्ट शम्बरासुरको मारकर आप मुझे शीघ्र द्वारकापुरी ले चलिये|

मायावतीकी सहायतासे प्रद्युम्नजीने शम्बरासुरका वध कर डाला| उसकी मृत्युपर देवताओंने प्रद्युम्नपर आकाशसे पुष्पवर्षा की तथा उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की| तदनन्तर मायावतीके साथ विमानपर चढ़कर प्रद्युम्नजी द्वारकापुरी पहुँचे| वे आकार-प्रकारमें श्रीकृष्णकी प्रतिमूर्ति थे| उन्हें देखकर रुक्मिणीजीका मातृस्नेह उमड़ आया, उनके स्तनोंसे स्वयं दुग्ध बहने लगा| रुक्मिणीजी सोच रही थीं कि यदि मेरा पुत्र कहीं जीवित हो तो इतना ही बड़ा होगा| इतनेमें ही वहाँ अपनी वीणाकी मधुर ध्वनिपर भगवन्नामोंका संकीर्तन करते हुए देवर्षि नारद् पधारे| उन्होंने प्रद्युम्नका वृत्तान्त बताते हुए कहा – ‘देवि! यह तुम्हारा ही पुत्र है| यह अपने अपहरणकर्ता शम्बरासुरका वध करके यहाँ आया है और यह स्त्री इसके पूर्वजन्मकी पत्नी रति है|’ देवर्षि नारदकी बातका अनुमोदन भगवान् श्रीकृष्णने भी किया| रुक्मिणीजीने अपने चिरकालसे बिछुड़े हुए पुत्रको हृदयसे लगा लिया| प्रद्युम्नजी भगवान् के चतुर्व्यूहमें द्वितीय स्थानपर परिगणित हैं| वैष्णवशास्त्रोंमें इसकी विशद चर्चा है|