व्यवहार की महिमा – कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित
व्यवहार की महिमा: संत कबीर दास जी के दोहे व व्याख्या
इस जीवन की आस |
टेसू फूला दिवस दस,
खंखर भया पलास ||
व्याख्या: कबीर जी कहते हैं कि इस जवानी कि आशा में पड़कर मद न करो | दस दिनों में फूलो से पलाश लद जाता है, फिर फूल झड़ जाने पर वह उखड़ जाता है, वैसे ही जवानी को समझो |
इस जीवन कि आस |
इस दिन तेरा छत्र सिर,
देगा काल उखाड़ ||
व्याख्या: गुरु कबीर जी कहते हैं कि मद न करो चर्ममय हड्डी कि देह का | इक दिन तुम्हारे सिर के छत्र को काल उखाड़ देगा |
माढ़ै बहुत मढ़ान |
सबही ऊभा पन्थसिर,
राव रंक सुल्तान ||
व्याख्या: जीना तो थोड़ा है, और ठाट – बाट बहुत रचता है| राजा रंक महाराजा — आने जाने का मार्ग सबके सिर पर है, सब बारम्बार जन्म – मरण में नाच रहे हैं |
जैसा सेमल फूल |
दिन दस के व्येवहार में,
झूठे रंग न भूले ||
व्याख्या: गुरु कबीर जी कहते हैं कि इस संसार की सभी माया सेमल के फूल के भांति केवल दिखावा है | अतः झूठे रंगों को जीवन के दस दिनों के व्यवहार एवं चहल – पहल में मत भूलो |
मिरगन खाया झारि |
खेत बिचारा क्या करे,
धनी करे नहिं बारि ||
व्याख्या: गुरु कबीर जी कहते हैं कि जीव – किसान के सत्संग – भक्तिरूपी खेत को इन्द्रिय – मन एवं कामादिरुपी पशुओं ने एकदम खा लिया | खेत बेचारे का क्या दोष है, जब स्वामी – जीव रक्षा नहीं करता |
कहँ सोवै सुख चैन |
साँस नगारा कुंच का,
है कोइ राखै फेरी ||
व्याख्या: अपने शासनकाल में ढोल, नगाडा, ताश, शहनाई तथा भेरी भले बजवा लो | अन्त में यहाँ से अवश्य चलना पड़ेगा, क्या कोई घुमाकर रखने वाला है |
जंगल होगा वास |
ऊपर ऊपर हल फिरै,
ढोर चरेंगे घास ||
व्याख्या: आज – कल के बीच में यह शहर जंगल में जला या गाड़ दिया जायेगा | फिर इसके ऊपर ऊपर हल चलेंगे और पशु घास चरेंगे |
दिवस गँवाये खाये |
हीरा जनम अमोल था,
कौड़ी बदले जाय ||
व्याख्या: मनुष्य ने रात गवाई सो कर और दिन गवाया खा कर, हीरे से भी अनमोल मनुष्य योनी थी परन्तु विषयरुपी कौड़ी के बदले में जा रहा है |
सुबरन कली दुलाय |
वे मंदिर खाली पड़े रहै मसाना जाय ||
व्याख्या: स्वर्णमय बेलबूटे ढल्वाकर, ऊँचा मंदिर चुनवाया | वे मंदिर भी एक दिन खाली पड़ गये, और मंदिर बनवाने वाले श्मशान में जा बसे |
चूना माटी लाय |
मीच सुनेगी पापिनी,
दौरी के लेगी आप ||
व्याख्या: चूना मिट्ठी मँगवाकर कहाँ मंदिर चुनवा रहा है ? पापिनी मृत्यु सुनेगी, तो आकर धर – दबोचेगी |