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सति की महिमा – कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित

सति की महिमा

सति की महिमा: संत कबीर दास जी के दोहे व व्याख्या

1 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
साधु सती और सूरमा,
इनका मता अगाध |

आशा छाड़े देह की,
तिनमें अधिका साध ||

व्याख्या: सन्त, सती और शूर – इनका मत अगम्य है| ये तीनों शरीर की आशा छोड़ देते हैं, इनमें सन्त जन अधिक निश्चय वाले होते होते हैं |

2 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
साधु सती और सूरमा,
कबहु न फेरे पीठ |

तीनों निकासी बाहुरे,
तिनका मुख नहीं दीठ ||

व्याख्या: सन्त, सती और शूर कभी पीठ नहीं दिखाते | तीनों एक बार निकलकर यदि लौट आयें तो इनका मुख नहीं देखना चाहिए|

3 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
सती चमाके अग्नि सूँ,
सूरा सीस डुलाय |

साधु जो चूकै टेक सों,
तीन लोक अथड़ाय ||

व्याख्या: यदि सती चिता पर बैठकर एवं आग की आंच देखकर देह चमकावे, और शूरवीर संग्राम से अपना सिर हिलावे तथा साधु अपनी साधुता की निश्चयता से चूक जये तो ये तीनो इस लोक में डामाडोल कहेलाते हैं|

4 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
सती डिगै तो नीच घर,
सूर डिगै तो क्रूर |

साधु डिगै तो सिखर ते,
गिरिमय चकनाचूर ||

व्याख्या: सती अपने पद से यदि गिरती है तो नीच आचरण वालो के घर में जाती है, शूरवीर गिरेगा तो क्रूर आचरण करेगा| यदि साधुता के शिखर से साधु गिरेगा तो गिरकर चकनाचूर हो जायेगा|

5 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
साधु, सती और सूरमा,
ज्ञानी औ गज दन्त |

ते निकसे नहिं बाहुरे,
जो जुग जाहिं अनन्त ||

व्याख्या: साधु, सती, शूरवीर, ज्ञानी और हाथी के दाँत – ये एक बार बाहर निकलकर नहीं लौटते, चाहे कितने ही युग बीत जाये|

6 दोहा (भक्त कबीर दास जी)
ये तीनों उलटे बुरे,
साधु, सती और सूर |

जग में हँसी होयगी,
मुख पर रहै न नूर ||

व्याख्या: साधु, सती और शूरवीर – ये तीनों लौट आये तो बुरे कहलाते हैं| जगत में इनकी हँसी होती है, और मुख पर प्रकाश तेज नहीं रहता|