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वहदत दा दरिआ – काफी भक्त बुल्ले शाह जी

वहदत दा दरिआ

की करदा हुण की करदा,
तुसी कहो ख़ां दिलबर की करदा| टेक|

इकसे घर विच वसदियां रसदियां,
नहीं बणदा विच परदा,
विच मसीत नमाज़ गुज़ारे,
बुतख़ाने जा वड़दा|

आप इक्को कई लख घरां दे,
मालक सभ घर घर दा,
जित वल वेखां तित वल तू ही,
हर दी संगत करदा|

मूसा ते फ़िरऔन बणा के,
दो हो क्योंकर लड़दा,
हाज़र नाज़र ख़ुदनवीस तद,
दोज़ख़ किस नूं खड़दा|

वाह-वाह वतन कहींदा एहो,
इक दब्बींदा इक सड़दा,
वहदत का दरियाउ सचावां,
ओथे हिस्से सभ कोई तरदा|

इत बल आपे उत बल आपे,
आपे साहिब बरदा,
अजब तमाशा देख तूं बुल्ल्हिआ,
सभ करदा नहीं करदा|

अद्वैत नदी

प्रभु की लीलाएं विचित्र हैं| वह सब-कुछ करता है और कुछ नहीं करता, इसलिए बुल्लेशाह पूछते हैं कि मेरा प्रिय क्या कर रहा है, अब वह क्या कर रहा है? देखकर तुम बताओ तो कि प्रिय क्या कर रहा है|

हम दोनों एक ही घर में रहते हैं (आत्मा-परमात्मा एक ही हैं), तो फिर बीच में यह परदा कैसा? कभी वह मस्जिद में नमाज़ अदा करता है, और कभी मन्दिर में भी चला जाता है|

लाख घरों में रहने पर भी वह स्वयं एक ही है| और हर घर का मालिक भी वही है| जिधर देखता हूं उधर तू ही नज़र आता है| हर एक के साथ होकर तू सबसे छल कर रहा है|

मूसा और फ़िरऔन दोनों को ही उसने स्वयं बनाया है| तब वही दो रूपों में होकर आपस में क्यों लड़ रहा है? वह हर जगह उपस्थित है और सब-कुछ देखता है, सभी कुछ उसी का बनाया हुआ है, फ़िर भी वह दोज़ख़ (नरक) में किसे ले जाता है| सब तो उसके अपने हैं|

कमाल है कि इस एक ही देश में, किसी को दफ़न किया जा रहा है, कोई जलाया जा रहा है| इस झंझट से परे अद्वैत नदी ही सच्ची है, जिसमें सभी तैरते दिखाई देते हैं (कोई डूबता नहीं)| इधर देखो तो वही है, और उधर भी स्वयं वही है, वह मालिक भी है और ग़ुलाम भी| बुल्लेशाह उसके अद्भुत खेल देख ले| वही सब-कुछ कर रहा है, हालांकि कुछ भी नहीं करता|

बस कर जी