रांझा जोगीड़ा बन आया – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
रांझा जोगीड़ा, बन आया नी,
वाह सांगी सांग रचाया नी| टेक|
इस जोगी दे नैन कटोरे,
बाज़ा वांगूं लैंदे डोरे,
मुख वेखिआं दुःख जावण छोड़े,
इन्हां अक्खियां लाल लखाया नी|
इस जोगी दी कीनी निशानी,
कन्न विच्च मुन्दरां गल विच गानी,
सूरत उसदी यूसफ़ सानी,
उस अलफ़ों अहद बनाया नी|
रांझा जोगी ते मैं जुगिआनी,
उसदी ख़ातर भरसां पानी,
एवें तां पिछली उमर विहाणी,
उस हुण मैनूं भरमाया नी|
बुल्ल्हा शौह दी हुण गत पाई,
पीत पुरानी मुड़ मचाई,
एह गल कीकण छपे छुपाई,
लै तख़त हज़ारे नूं धाया नी|
रांझा जोगी बनकर आया है
निराकार और प्रकाशमय आत्मा माया के प्रभाव से देह धारण करती है| परमात्मा (रांझा) को भी संसार में योगी का वेश धरकर आना होता है सद्दगुरु हीर को प्रभु रूप की असली झलक दिखाता है| हीर (आत्मा) को जेब रांझे में प्रभु के दर्शन होते हैं, तो वह स्वत: उस योगी की तरफ़ खिंची चली जाती है और प्रीति-पुरातन जाग जाती है| बुल्लेशाह ने इसी भाव को इस काफ़ी में व्यक्त करते हुए लिखा है कि रांझा (परमात्मा) जोगी बनकर आया है और कैसा अनुपम रूप है और उस स्वांगधारी ने कैसा स्वांग रचाया है|
इस जोगी के नयन जैसे मद के प्याले हैं और ये आंखे बाज़ के समान मेरे चारों ओर मंडराती रहती हैं| देखने से सुख मिलता है और सारे दुख छुट जाते हैं| इसने प्रिय के साक्षात दर्शन करवा दिए हैं|
इस जोगी की निशानी क्या है? इसके कानों में मुद्रिकाएं हैं, गले में माला है| वह इतना रूपवान है, जैसे वह दूसरा यूसफ़ हो| उसने अलिफ़ को अहद1 बना दिया है|
रांझा जोगी है, मैं उसकी जोगिन हूं| मैं तो उसके लिए सब-कुछ करने को तैयार हूं| मैं तो उसकी पनिहारन बन जाऊंगी| मुझे तो दुख यही है कि योगी से प्रेम होने से पहले का समय व्यर्थ ही बीत गया| अब जब वह मिल गया है, तो उसने मुझे पूरी तरह अपने वश में कर लिया है|
बुल्लेशाह कहता है, अब मैं पति परमेश्वर को जान गई हूं और पुरानी प्रेमाग्नि पुन: धधक उठी है| यह प्रेम अब कैसे भी छुपाए नहीं चुप सकता| मेरा प्रिय मुझे तख़्त हज़ारे की ओर लेकर चल पड़ा है|