मुरली बाज उठी – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
मुरली बाज उठी अनघातां
सुण सुण भुल्ल गईआं सभ बातां| टेक|
लग गए अनहद बाण न्यारे,
छुट गए दुनिया कूड़ पसारे,
साईं मुख वेखण दे वणजारे,
दूइयां भुल गइयां सभ बातां|
हुण असां चंचल मिरग फहाया,
ओसे मैंनूं बन्ह बहाया,
हरफ़ दुगाना उसे पढ़ाया,
रह गईआं दो-चार रुकातां|
बुल्ल्हा शाह मैं तद बिरलाई,
जद दी मुरली कान्ह बजाई,
बउरी होई ते तैं वल धाई,
खोजीआं कित वल दस्त बरातां?
मुरली बज उठी
अचानक ही आनन्द ध्वनि की मुरली बज उठी है और उसे सुनकर मैं सभी कुछ भुल गई हूं|
अनहद शब्द के विचित्र बाण मेरे हृदय को बींध गए हैं, जिससे सारा संसार नाशवान लगने लगा है| दुनिया का झूठा पसारा मुझसे छुट गया है| अब तो उस प्रियतम का मुख देखने की ही उत्कट इच्छा रह गई है| बाक़ी की सभी बातें भूल गई हैं|
अब तो हमने चंचल मृग-रूपी मन जाल में फंसा लिया है, लेकिन उसने भी मुझे बांधकर बिठा लिया अर्थात मुझे निश्चल कर दिया है| नमाज़े-शुक्राना भी उसी ने पढ़ाया है| अब तो बस दो-चार रकातें1 शेष रह गई हैं| (उसका सारा प्रेमगीत पढ़ लिया है, बस थोड़ा ही पूछना शेष रह गया है|)
बुल्लेशाह कहते हैं कि वह अनहद नाद सुनकर मैं व्याकुल हो गई हूं| जब से कान्हा ने मुरली बजाई है, मैं बावरी होकर तेरी ओर ही भाग रही हूं| कहो जी, अब प्रेम का हाथ तुम किस ओर बढ़ा रहे हो?
(अनहद नाद की गुप्त मुरली का राग प्रकट हो जाने पर संसार की असारता और प्रियतम के वियोग की भावना तीव्रतर हो जाती हैं| उस आनन्द की प्राप्ति के लिए चित्त व्याकुल रहता है|