मेरी बुक्कल दे विच चोर – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
मेरी बुक्कल दे विच चोर नी,
मेरी बुक्कल दे विच चोर| टेक|
साधो किस नूं कूक सुणावां,
मेरी बुक्कल दे विच चोर,
चोरी चोरी निकल गिआ,
ते जग विच पै गिआ शोर|
जिस नाता तिस जाण लिआ,
ते होर होए, झुर मोर,
चुक गए सारे झगड़े झेड़े,
निकल पिआ कोई होर|
मुसलमान सिवे तों डरदे,
हिन्दू डरदे गोर,
दोवें एसे दे विच मरदे,
इहो दोहां दी खोर|
किते रामदास किते फ़तेह मुहम्मद,
इहो क़दीमी शोर,
मिट गिआ दोहां दा झगड़ा,
निकल पिया कुझ होर|
अरभ मुनव्वर बांगां मिलियां,
सुणियां तख्त लहौर,
शाह इनायत कुंडियां पाइयां
लुक छुप खिचदा डोर|
मेरी बुक्कल में चोर
मेरी बुक्कल में चोर है री| वह चितचोर कहीं बाहर नहीं, अन्दर ही है| वह चोर तो मेरी बुक्कल में है| साधो, मैं चीख़-चीख़कर किसे सुनाऊं कि मेरी बुक्कल में चोर है| वह चोरी-चोरी निकल गया, और संसार-भर में शोर मच गया| वह प्रिय संसार-भर मैं तरह-तरह के रंग-रूप धारण करता है, जिससे न जाने कितने झगड़े उठ खड़े होते हैं|
जिसने उसे समझने का यत्न किया, उसे ज्ञान हो गया, शेष सभी मोरों के समान झुरते-बिसूरते रह गए| जब वास्तविकता का पता चला, तो सभी विवाद समाप्त हो गए| खोजने पर ज्ञात हुआ कि असली मालिक तो कोई और ही है|
मुसलमान मृतक को जलाए जाने से डरते हैं और हिन्दू क़ब्र में दफ़नाए जाने से डरते हैं, दोनों इसी भय से मरते रहते हैं कि कहीं ऐसा न हो जाए, तो दोज़ख़ (नरक) न मिले और यही उनके परस्पर वैमनस्य का कारण है|
कहीं किसी मनुष्य का नाम रामदास रख दिया जाता है और कहीं कोई मनुष्य फ़तेह मुहम्मद के नाम से जाना जाता है| प्राचीन काल से यही झगड़ा चला आता है| जब यह जान लिया कि परमात्मा दोनों में एक ही है, तो दोनों का आपसी झगड़ा मिट गया|
यहां तक संकेत भी प्राप्त होता है कि फ़ादिरी सम्प्रदाय का प्रथम सद्गुरु पीर दस्तगीर बग़दाद का रहने वाला था| वहां की नमाज़ की अज़ान लाहौर में सुनाई देती है| यानी शाह इनायत उस ईश्वरीय वाणी को सुन सकते हैं, मेरे मुर्शिद शाह इनायत ने मुझे (मछली की तरह) कुंडी में फंसा रखा है| वही छुपकर डोरी को खींचता रहता है|