ख़ाकी – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
ख़ाकी ख़ाक स्यों रल जाणा,
कुछ नहीं ज़ोर धिंगाणा| टेक|
ग्ये सो ग्ये फेर नहीं आये
मेरी जानी, मीत, प्यारे,
मैं बाझों ओह रहंदे नाहीं,
हुण क्यों असां बिसारे,
विच क़बरां दे ख़बर न काई,
मारू केहा झुलाणा|
चित्त पिआ न जाये असाधों,
उब्भे साह न रहंदे,
असीं मोईआं के परले पार होये,
जीवंदिआं विच बहंदे,
अज कि मलक तगादा सानूं,
होसी वज कहाणा|
ओथे मगर पिआदे लग्गे,
तां असीं एथे आये,
एथे सानूं रहंण न मिलदा,
अज्जे कित बल धाये,
जो कुछ अगलिआं दे सिर बीती,
असां भी ओह टिकाणा|
बुल्ल्हा एथे रहण न मिलदा,
रोंदे पिटदे चल्ले,
इक नाम धन्नी खरची है,
होर बिहा नहीं कुझ पल्ले,
मैं सुफ़ना सभ जग भी सुफ़ना,
सुफ़ना लोग बिबाना|
मिट्टी के पुतले
मिट्टी के पुतले, हे मनुष्य, तू अन्तत: ख़ाक में मिल जाएगा| आज मुझे अपने में जो शक्ति दिखती है, वह किसी काम नहीं आएगी|
दुनिया का तो यह चलन है कि जो चले गए, वे लौटकर नहीं आए| वे मेरे प्राणप्रिय, मेरे मित्र और मेरे प्यारे थे, जो मेरे बिना रहते नहीं थे| अब उन्होंने हमें क्यों बिसार दिया? वे तो अब क़ब्रों में दफ़न हैं और उनका कोई समाचार हम तक नहीं पहुंचता| मृत्यु-मुख का यह कैसा बवंडर फैला हुआ है|
हमारी हालत यह है कि हम न तो चित लेट सकते हैं और न पट; उर्ध्वमुख श्वास तक नहीं निकलते, हम तो मरे हुओं के भी पार जा चुके हैं और जीवितों के बीच रहने का भ्रम पाले हुए हैं| आज या कल मृत्यु अवश्य ही तकाज़ा करने आएगी और उस समय बहुत बड़ा क़हर होगा|
वहां (मृत्यु के) प्यादे हमारा पीछा कर रहे थे, तभी हम यहां तक चले आए| अब यहां भी हमें रहने नहीं दिया जाता| अब यहां से आगे कहां जाएंगे? जो कुछ हमारे पूर्वजों के सिर पर बीती, हम पर भी वही बीतेगी, हमारा भी वही ठिकाना होगा, जो उनका है|
बुल्लेशाह कहते हैं कि यहां हमें रहने नहीं दिया जा रहा, हम रोते-पीटते जा रहे हैं| महाधनी प्रभु का नाम ही हमारा धन है, जिसे हम ख़र्च कर सकते हैं और दूसरा कुछ भी हमारे पल्ले नहीं है| मैं स्वप्न हूं, सारा संसार स्वप्न है, शेष सभी लोग स्वप्न हैं| अर्थात सब-कुछ स्वप्न ही तो है|