इक टूणा – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
इक टूणा अचम्भा गावंगी,
मैं रुट्ठा यार मनावांगी| टेक|
इह टूणा मैं पढ़-पढ़ फूंका,
सूरज अगन जलावांगी|
अक्खीं काजल काले बादल,
भवां से आंधी लिआवांगी|
सत समुन्दर दिल दे अन्दर,
दिल से लहर उठावांगी|
बिजली होकर चमक डरावां,
बादल हो गरजावांगी|
इश्क़ अंगोठी हरमल तारे,
चांद से कफ़न बनावांगी|
लामकान की पटड़ी ऊपर,
बैहकर नाद बजावांगी|
लाए सवां मैं शोह गल अपने,
तद मैं नार कहावांगी|
एक टोना
इस काफ़ी में प्रेमिका (आत्मा) कहती है कि मुझे भले ही कोई साधन अपनाना पड़े, मैं जैसे भी होगा, अपने प्रियतम (परमात्मा) को मनाकर रहूंगी| मैं विचित्र बोल गाऊंगी और इस तरह अपने रूठे प्रियतम को मनाऊंगी| इस मन्त्र को पढ़-पढ़कर फूंकें मारूंगी,जिससे सूर्य के समान अग्नि पैदा होगी| मेरी आंखों का काजल काला बादल बन जाएगा और भौंहों से तो मैं आंधी ही ले आऊंगी| सात समुद्रों को मैं हृदय में समेटकर दिल ही से उनमें तूफ़ान उठाऊंगी|
बिजली बनकर मैं डरावनी चमक पैदा करूंगी, और बादल के समान गरजूंगी| इश्क़ की अंगीठी में हरमल (जड़ी-बूटी) फेंकूंगी और तारों का ईंधन जलाऊंगी| चांद की चांदनी से सफ़ेद कफ़नी बनाऊंगी| लामकान की पटड़ी पर बैठकर मैं नाद बजाऊंगी| अपने शौहर को अपने गले लगाकर सो जाऊंगी, तभी मैं उसकी प्रिया कहाने के योग्य हो सकूंगी|