हिन्दू नहीं ना मुसलमान – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
हिन्दू नहीं ना मुसलमान,
बहिये त्रिंजण1 तज़ अभिमान| टेक|
सुन्नी ना, नाहीं हम शीआ,
सुलहकुल का मारग लीआ|
भुक्के नहीं, नहीं हम रज्जे,
नंगे ना, नहीं हम कज्जे|
रोंदे ना, नहीं हम हसदे,
उजड़े ना नहीं हम वसदे|
पापी ना, सुधरमी ना,
पाप पुन्न की राह न जां|
बुल्लेशाह जो हरि चित लागे,
हिन्दू तुरक दूजन तिआगे|
हिन्दू नहीं, मुसलमान भी नहीं
अध्यात्म की उच्च भूमि पर पहुंचकर साधक-सन्त अद्वैत भावयुक्त हो जाता है और कह उठता है कि मैं न तो हिन्दू हूं और न मुसलमान| सब आत्माएं सखियों की भांति अभियान त्यागकर परलोक की तैयारी करें|
वस्तुत: हम तो आत्मा-मात्र हैं| हम न शिया हैं, न सुन्नी| हम भूखे भी नहीं हैं और भरे पेट भी नहीं हैं| हम न वस्त्र पहने हैं और न निर्वस्त्र (नंगे) हैं| न हम रोते हैं और न हंसते हैं| घर त्यागकर हम न तो उजड़ों की भांति रहते हैं और न ही किसी एक स्थान पर बसे हुए हैं| हम न पापी हैं, न सुधर्मी हैं| हम न तो पाप के मार्ग पर चलते हैं और न पुण्य के मार्ग पर| सच्चाई तो यह है कि जो अपना चित्त (मन) हरि में लगा लेते हैं, उनके लिए हिन्दू-तुरक जैसा द्वैत मिट जाता है|