इक अलफ़ पढ़ो छुटकारा ए – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
इक अलफ़ पढ़ो छुटकारा ए| टेक|
इक अलफ़ों दो तीन चार होए,
फिर लख करोड़ हज़ार होए,
फिर ओथों बाझ शुमार होए,
हिक अलफ़ दा नुक़ता न्यारा ए|
क्यों पढ़ना एं गड्ड किताबां दी,
सिर चाना एं पंड अज़ाबां दी,
हुण होइउ शकल जलादां दी,
अग्गे पैंडा मुश्कल मारा ए|
बण हाफ़िज़ हिफ़ज़ क़ुरान करें,
पढ़-पढ़ के साफ़ ज़बान करें,
फिर निअमत वल्ल ध्यान करें,
मन फिरदा ज्यों हलकारा ए|
बुल्लाह बी बोहड़ या बोया सी,
ओह बिरछा वड्डा जां होया सी,
जद बिरछ ओह फ़ानी होया सी,
फिर रह गया बीज अकाश ए|
इक अलफ़ पढ़ो छुटकारा ए|
एक अक्षर में मुक्ति
एक अलिफ़ (अल्ला) का नाम लो, इसी में मुक्ति है, निजात है| (अरबी-फ़ारसी) वर्णमाला में अल्लाह लिखें, तो पहला अक्षर अलिफ़ है, जो आकार में एक ‘परमात्मा’ के समान है|) उसी एक से दो-तीन-चार हुए यानी सृष्टि कि उत्पत्ति हुई| उनसे फिर हज़ारों, लाखों और करोड़ों हुए, और फिर उन्हीं से अगणित होते गए| इस प्रकार यह एक का नुक्ता कितना अद्वितीय है| क्यों पढ़ते हो गाड़ी-भर किताबें, आख़िर क्यों पढ़ते हो और सिर पर (क्यों) उठाते हो गठड़ी दुखों की?
(बहुत पढ़ लेने के बाद) तुम्हारी शक्ल जल्लाद-सी हो गई है| (मौत के बाद) तुम्हें दुर्गम घाटी में से गुज़रना होगा|
हाफ़िज़ बनकर क़ुरान शरीफ़ हिफ्ज़ (कंठस्थ) कर ली और बार-बार पढ़ कर ज़बान भी रवां कर ली| उसके आगे हुआ यह कि दुनिया की नेमतों की ओर ध्यान देने लगे और मन हरकारे की तरह चहुं ओर दौड़ने लगा|
अर्थात किताबी ज्ञान के बाद भी चित्त स्थिर होकर प्रभु चरणों में नहीं लगा| बुल्लेशाह कहता है कि कभी वटवृक्ष बड़ा होता गया| जब यह वृक्ष नष्ट हो जाएगा, तो जो कुछ बाक़ी बचेगा वह बीज-रूप में आकाररहित अल्ला होगा| संसार-रूपी वृक्ष नष्ट होने पर बीज-रूप में निराकार परमात्मा ही विद्यमान होता है| इसी प्रकार शरीर नष्ट होने पर आत्मा नष्ट नहीं होती| अत: एक अल्ला का नाम लो| इसी में मुक्ति (निजात) है|