बस कर जी – काफी भक्त बुल्ले शाह जी
बस कर जी, हुण बस कर जी ,
कोई गल असां नाल हस कर जी|टेक|
तुसीं दिल मेरे विच वसदे सी,
तद सानूं दूर क्यों दसदे सी,
घत जादू दिल नूं खसदे सी,
हुण आइओ मेरे वस कर जी|
तुसी मोइआं नूं मार ना मुकदे सी,
नित्त खिद्दो वांगूं कुटदे सी,
गल करदे सां गल घुटदे सी,
हुण तीर लगाइओ कस कर जी|
तुसीं छपदे हो, असां पकड़े हो,
असां विच्च जिगर दे जकड़े हो,
तुसीं अजे छपण नूं तकड़े हो,
हुण रहा पिंजर विच वस कर जी|
बुल्ल्हा शौह असीं तेरे बरदे हां,
तेरा मुख वेखण नूं मरदे हां,
बन्दी वांगूं मिनतां करदे हां,
हुण कित वल जासो नस कर जी|
बस करो जी
विरहिणी आत्मा विरह, दुख सहते-सहते दुखियाकर कहती है कि बस करो जी, अब बस करो| नाराज़ी छोड़कर हमसे हंस-हंसकर कोई बात करो|
यों तो तुम सदा मेरे हृदय में वास करते रहे, किन्तु कहते यही रहे कि हम दूर हैं| जादू डालकर दिल छीन लेने वाले अब जाकर कहीं मेरे वश में आए हो|
तुम इतने निर्दयी कैसे हो कि मरे हुए को भी मारते रहे और तुम्हारा मारना तो कभी समाप्त न हुआ| कपड़े की कतरनों से बने गेंद की तरह हमें पीटते रहे| हम बात करना चाहते हैं, तो तुम गला घोंटकर हमें चुप करा देते हो और अबकी बार तो तुमने हम पर कसकर बाण चलाया है|
तुम छुपना चाहते हो, लेकिन हमने तुम्हें पकड़ लिया है| पकड़ ही नहीं लिया, बल्कि हमने तुम्हें जी-जान से पकड़ लिया है| हम जानते हैं कि तुम बहुत बलवान हो, अभी भी भागकर छुप सकते हो, लेकिन अब तो हमारे अस्थि-पंजर में ही रहो|
बुल्ला कहता है कि हे प्राणपति, हम तो तुम्हारे परम दास हैं, तुम्हारा मुख देखने के लिए तरस रहे हैं, बन्दी की तरह अनुनय-विनय कर रहे हैं, इस विनय के सामने भला अब दौड़कर किधर जाओगे?